112 212 221 212
बस कर ये सितम के,अब सजा न दे
हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।
अपनी सनम थोड़ी सी वफ़ा न दे
मुझको बेवफ़ाई की अदा न दे।
गुजरा वख्त लौटा है कभी क्या?
सुबहो शाम उसको तू सदा न दे।
कलमा नाम का तेरे पढ़ा करूँ
गरतू मोहब्बतों में दगा न दे।
इनसानियत को जो ना समझ सके
मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।
रखके रू लिफ़ाफे में इश्क़ डुबो
ख़त मै वो जिसे साकी पता न…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 10, 2015 at 4:35pm — 25 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें
यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें
मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की
सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें
कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात
लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें
न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ
बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें
बना डाला…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 5:30pm — 26 Comments
१२१ २२ १२२
अजीब है ये जिन्दगी
सलीब है ये जिन्दगी
न जान तू किस खता की
नसीब है ये जिन्दगी
इश्क जिसे है,उसी की
रकीब है ये जिन्दगी
गिने जु सांसे, बहुत ही
गरीब है ये जिन्दगी
निकाह मौत तुझसे औ
हबीब है ये जिन्दगी
‘मौलिक व अप्रकाशित’
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:00am — 14 Comments
लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..
आराम फरमा रहे हैं वो जंगों में...
दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा
ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में..
किसने बनाये हैं ये सनमकदे...
ख़ुदा भी बंट गया बन्दों में...
मेरी इन्ही आँखों ने,नजर में तेरी ए-सनम
देखा है खुद को कई रंगों में..
है किसे तौफ़ीक जो गैरों के चाक सिले?
मै भी नंगा हो गया नंगों में....
‘’मौलिक व अप्रकाशित’’
२०१४ में उ.प्र. में फैले दंगों के…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 9:00pm — 2 Comments
तू मेहरबां है के खफा है मुझे पता तो लगे..
गुलशन में बातें सुलग रहीं है..जरा हवा तो लगे..
मोहब्बतों में ऐसा जलना भी क्या?बुझना भी क्या?
जले तो आंच न आये,बुझे तो न धुँआ लगे..
अजब हो गया है अब तो चलन मुहब्बतों का..
मै वफ़ा करूँ तो है उसको बुरा लगे...
वो चाहता है के मै उसके जैसा बन जाऊ...
है जो हमारे दरमियाँ न किसी को पता लगे..
इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...
गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |