22 22 22 22 22 22
चिकनी बातों में आ जाना अच्छा है क्या?
बेमतलब खुद को बहलाना अच्छा है क्या??1
मूंछों पर दे ताव चले हर वक्त महाशय,
टेढ़ी पूंछों को सहलाना अच्छा है क्या?2
गाओ अपना गीत,करो धूसर वैरी को
कटती गर्दन तब मुसुकाना अच्छा है क्या?3
देखा है दुनिया ने अपना पौरुष पहले
नासमझों के गर लग जाना अच्छा है क्या?4
बाजार बनी जिसके चलते धरती अपनी
उस कातिल से हाथ मिलाना अच्छा है क्या?5
तुम बंद…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on June 17, 2020 at 6:47pm — 2 Comments
' हां, ठीक हूं सविता।' मास्क के अंदर से आवाज आई।
' अच्छा चल बता,अब तेरे वो कैसे हैं?' सविता की मास्क ने चुटकी ली,क्योंकि शालू हमेशा अपने पति की शिकायत करती रहती थी।कभी कभी तो वह अपने निः संतान होने का दोष भी पति के मत्थे मढ़ देती।पति का दिन रात अपने ऑफिस के काम में तल्लीन रहना एक अच्छा सा बहाना भी था।भला एक थका मांदा मर्द पत्नी को औलाद क्या देगा? खा - पी के पड़ रहेगा।ऐसे क्या भला औलाद आसमान से टपकेगी?वह यही सब सोचती और अधिकतर सविता को यह सब…
Added by Manan Kumar singh on June 8, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
22 22 22 22
मैंने डिग्री हासिल की है
सब कहते हैं,नाक बची है।1
फेल अगर तुम हो जाओ, तो
लोग कहेंगे,नाक कटी है।2
गुस्से का इजहार हुआ तो,
यूं लगता है,नाक चढ़ी है।3
हो जाते जब लोग बड़े, सब
कहते,उनकी नाक बड़ी है।4
सर्दी - खांसी,नजला हो,तो
कहते,खुलकर नाक चली है।5
ऑक्सीजन से जीवन देती,
कहते,कितनी नाक भली है!6
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on May 31, 2020 at 10:58am — 5 Comments
22 22 22 22
कैसी आज करोना आई
करते है सब राम दुहाई।
आना जाना बंद हुआ है,
हम घर में रहते बतिआई!
दाढ़ी मूंछ बना लेते हैं
सिर के बाल करें अगुआई।
बंद पड़े सैलून यहां के
रोता फिरता अकलू नाई।
डर के मारे दुबके हैं सब
नाई कहता, 'आओ भाई!
मास्क लगाकर मैं रहता हूं
तुम क्योंकर जाते खिसियाई?
मुंह ढको,फिर आ जाओ जी,
घर जाओ तुम बाल कटाई।
एक दिवस की बात नहीं यह
आगे बढ़ती और लड़ाई।
झाड़ू पोंछा,बर्तन बासन,
अपना कर,अपनी…
Added by Manan Kumar singh on May 27, 2020 at 1:15pm — 7 Comments
कौवा तब सफेद था।बगुलों के साथ आहार के लिए मरी हुई मछलियां, कीड़े वगैरह ढूंढ़ता फिरता। फिर बगुलों ने जीवित मछलियों का स्वाद चखा।वह उन्हें भा गया। अब वे जीवित मछलियां ही उड़ाने लगे।सोचते कि भला कौन मुर्दों की खिंचाई करे।उन्हें भी तो चैन नसीब हो।जिंदगी भर हुआ कि नहीं,किसे पता।अहले सुबह वे कुछ मरी हुई छोटी छोटी मछलियां और कीड़े मकोड़े लिए तालाब के ऊपर मंडराने लगते।उनके टुकड़े कर पानी में फेंकते...मछलियां अपने आहार की खातिर झुंड के झुंड पानी की सतह पर आतीं....फिर बगुले झपट्टा…
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2020 at 6:30am — 4 Comments
2122 2122 2122
खुश हुआ तू बोलकर,' है जानवर तू'
लग रहा खुद को बताता,बेसबर तू।
सांस बनकर बह रहीं ठंडी हवाएं
आग की लपटें उठा मत बन, कहर तू।
ख्वाब पाले मौन बैठी हैं सदाएं
कानफाड़ू! ला सके तो,ला सहर तू?
तार होती हो नहीं उम्मीद कोई,
हो अगरचे तो बता,कोई पहर तू?
हर्फ हासिल हो गए तो शायरी कर,
क्यूं अंधेरों को बढ़ाता है बशर तू?
मत बिठा मेरी गजल को हाशिए पर
छटपटाती है बहर,देखे अगर तू।
रुक्न रोते, बुदबुदाते शब्द सारे,
नज़्म कहकर…
Added by Manan Kumar singh on May 17, 2020 at 11:30am — 11 Comments
2122 2122 2122
अश्क धोकर आदमी थकने लगा है
सोचता - अब और रोना तो बला है।1
गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो
शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2
गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से
जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3
डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,
क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4
कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी
जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5
ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 10, 2020 at 9:45pm — 6 Comments
डॉक्टर की बातों के जवाब में वर्मा जी कहने लगे-
-हाँ साहब, मुझे पुरानी चीजों से लगाव है।चाहे यादें हों,या पुस्तकें,पन्ने आदि।
-मसलन?
-मैं यदा-कदा यह निर्णय ही नहीं कर पाता कि किन यादों को स्मृति-पटल से खुरचकर मिटा देना चाहिए या कौन किताब या पन्ना अपनी अलमारी से बाहर करूँ,कौन रखूँ।
-मतलब ,आप दुविधाग्रस्त रहते हैं।
-जी।
-और पुरातनता से संबद्ध भी रहना चाहते हैं।
-जी।पर कभी-कभी अपने इस लगाव के चलते पश्ताचाप भी होता है कि मैं अनावश्यक तौर पर अनचाही चीजों में फँसकर खुद…
Added by Manan Kumar singh on April 27, 2020 at 8:30am — 4 Comments
अकस्मात गांव में भीड़ बढ़ गई। कालू, खखनु आदि ही नहीं शंकर सेठ वगैरह भी सपरिवार गांव आ गए हैं।सुना है और लोग भी आनेवाले हैं। अभी कुछ दिनों तक ये सब यहीं रहेंगे। बुधु यह सोचकर परेशान है कि जो लोग खास मौकों पर भी गांव आने से कतराते थे,वे आज धड़ल्ले से क्यों मुंह उठाए भागे आ रहे हैं,वो भी पूरे बाल बच्चों के साथ।कहते थे कि इनके बच्चे एसी कूलर के बिना सो नहीं सकते।बिजली के बिना क्या तो, रोने लगते हैं।अब यह कौन करिश्मा हुआ है भाई?
यही सब सोचते वह पोखर से लौट रहा था कि लक्खू मास्टर जी मिल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on April 14, 2020 at 7:58am — No Comments
22 22 22 22
शोर हवाओं ने बरपाए,
घाव हरे होने को आए।1
बंटवारे का दर्द सुना,अब
देख कलेजा मुंह को धाए।2
रोजी खातिर परदेश गए
घर भागे सब,धक्के खाए।3
आफत ऐसी आई उड़कर
सबने अपने रंग दिखाए।4
बबुआ भैया जो कहते थे,
सबने फिर से हाथ उठाए।5
बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी
खाने को भूखे ललचाए।6
तीर कमान चढ़ाए चलते
दोमुख सबको कौन बताए?7
मांग बना जो राजा,बैठा
दाता लाठी -…
Added by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:20pm — 4 Comments
गांव मुहल्लों के लोग कोरोना के कहर के भय से मुक्त अब राहती राशन की आस में खुश हैं।मुखिया, सरपंच और गांव के अगहरिया लोगों के सभी लोग राशन कार्ड धारी हैं ही,लाल कार्ड वाले भी हो गए हैं।भले ही साधन संपन्न हों,तो क्या हुआ?एक बार कुछ ले देकर नाम शामिल हो गए,तो फिर चांदी ही चांदी है।मुफ्त का माल खाते रहिए।पूछता ही कौन है? वातावरण इसी मुआफिक बना हुआ है।कल्लू खेतिहर की बीवी बगल के घर आई है।
" कल अनाज लेने जाना होगा", कल्लू की बहुरिया इतराती हुई बोली।
" कहा से?"अनजान बनती हुई मास्टर भोला…
Added by Manan Kumar singh on March 27, 2020 at 7:06pm — 2 Comments
दुल्हन ने किचन की कमान संभाली। मितव्ययिता के आकांक्षी घरवाले बड़ी बड़ी उम्मीदें पाले हुए थे कि अब कुछ बचत होगी।बजट सुख दायक होगा। अन्य कार्यों के लिए कुछ धन बचाया जा सकेगा।......
फिर कुछ दिनों के बाद जब खाने का जायका मुंह चिढ़ा ने लग,तब सास ने एक दिन राशन के बरतन देखे। देखती ही रह गई।नमक - चीनी की पहचान मुश्किल थी।चावल - दाल ग ले मिलते दिखे। जो बरतन सामने थे,वे लगभग भरे थे, पीछे वाले रिक्तप्राय।वह किचन प्रबंधन का नवीन गुर समझ गई।खाने के स्वाद की माधुर्य मिली मिर्ची मुखर हो…
Added by Manan Kumar singh on March 15, 2020 at 11:08am — 4 Comments
बैंक ने रेहन रखी संपत्तियों की नीलामी की सूचना छपवाई।साथ में फोन पर बात करती किसी लड़की की भी फोटो छप गई। बैंक वाले खुश थे कि इससे नीलामी प्रक्रिया का प्रचार प्रसार होगा,मुफ्त में ।उधर फोटो वाली लड़की आग - बबूला हो रही थी --
' भला ऐसा कैसे कर सकते हैं ये बैंक वाले?'
' कर चुके,' दूसरे ग्राहक ने आं खें मटकाई।
' अरे मैं तो इस ऑफिस में कल पैसे जमा कराने आई थी,जब ये बैंक वाले अपने नोटिस बोर्ड की फोटो ले रहे थे...करम..ज ...ले सब।'
' और संपत्ति विवरण में आपकी भी फोटो…
Added by Manan Kumar singh on January 16, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
कान और कांव कांव
*****
एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।
दूसरा:एं?
पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज…
Added by Manan Kumar singh on January 11, 2020 at 2:58pm — 6 Comments
लड़की को डायरिया थी।आज उसे इस तीसरे नामी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।रिपोर्ट की फाइलें साथ थीं।घरवाले परेशान थे,पर हॉस्पिटल तो जैसे देवालय हो।सब लोग बड़े आराम से अपनी अपनी ड्यूटी में लगे थे।डॉक्टर आया।सुना था कि बड़ा डॉक्टर है।उसने सरसरी निगाह से कुछ ताजा रिपोर्टें देखी।फिर दवाएं लिखने लगा।तीमारदारों में से एक ने यूरिन कल्चर की रिपोर्ट की तरफ इंगित करना चाहा,पर डॉक्टर ने कोई तवज्जो नहीं दी।दवाएं लिख दी।इलाज शुरू हुआ।लड़की की तबीयत बिगड़ती ही गई।पेट फूलता जा रहा था।फिर रात को घरवालों ने…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on December 29, 2019 at 12:42pm — 2 Comments
वोटर पापड़ बेल रहे हैं
और मसीहे खेल रहे हैं।1
उम्मीदें जिनकी मुरझाईं
उट्ठक - बैठक पेल रहे हैं।2
मत देने पर स्याही सूखी,
दाग लगे, सब झेल रहे हैं।3
लड़ते - मरते लोग - लुगाई
नेता भरसक रेल रहे हैं।4
'अक्ल बड़ी कह भैंस लजाई,
अंधे गाड़ी ठेल रहे हैं।5
जिसकी पूंछ मिले,पकड़ें सब
बैतरणी को हेल रहे हैं।6
पाठ पढ़ाते चलते हैं वे
जो जीवन भर फेल रहे हैं।7
कुर्सी खातिर मिल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on December 14, 2019 at 4:44pm — 8 Comments
' नागरिक...जी हां नागरिक ही कहा मैंने ', जर्जर भिखारी ने कहा।
' तो यहां क्या कर रहे हो?' सूट बूट धारी लोगों ने उसे घुड़का।
' अपना सच ढूंढ रहा हूं ।'
' मतलब?'
' नहीं समझे?'
' नहीं।समझा दो।'
' सच यानी अपने यहां का होने का प्रमाण साहिब।'
' तुम यहीं के हो?'
' पीढ़ियां गुजर गईं यहीं।'
' फिर प्रमाण क्या?'
' अपने हाकिमों को दिखाना होगा न।वरना कहां भीख मांगूंगा?'
' तुम्हारा मतलब भीख मांगने के लाइसेंस से है क्या?'
' हे हे हे...नहीं समझे फिर…
Added by Manan Kumar singh on December 12, 2019 at 9:44am — 3 Comments
'कभी - कभी विपरीत विचारों में टकराव हो जाया करता है। चाहे - अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियां प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य - व्यवसाय के लोगों के बीच अपने - अपने कर्तव्य - निर्वहन को लेकर मरने - मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा कदा तो परस्पर की लड़ाई भिड़ाई में प्राणी इहलोक - परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहां हैं,तो तुरंत ऊपर पहुंच जाते हैं।पहुंचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुंह देखते रह गए।
'…
Added by Manan Kumar singh on December 9, 2019 at 7:00am — 5 Comments
'भूं भूं...भूं' की आवाज सुन भाभी भुनभुनाई--
' भोरे भोरे कहां से यह कुक्कुड़ आ गया रे?'
' कुक्कुड़ मत कहना फिर, वरना....', बगल वाली आंटी गुर्राई।
' अरे तो क्या कहूं, डॉगी?'
' नहीं।'
' तो फिर?'
' पपलू है यह।पप्पू के पापा इसे प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं।समझ गईं, कि नहीं?'
' बाप रेे..ऐसा?'
' और क्या?हमारे परिवार का हिस्सा है अपना पपलू। हमारे संग नहाता - धोता,खाता - पीता है यह।'
' और सब....?'
' और..?सब कुछ हमारे जैसा ही करता…
Added by Manan Kumar singh on December 7, 2019 at 11:00am — 1 Comment
संघे शक्ति
***
पका फल पेड़ पर लटका हुआ था।भालू परेशान था।वह चाहता था कि पका फल उसका रेंगता हुआ बेटा तोड़ लाए जिससे कुल खानदान का यश उजागर हो।पर बेटा वहां तक पहुंचे कैसे,यह यक्ष प्रश्न बना हुआ था। दूसरे भालू,लोमड़ी से बातें हुईं।उम्मीद बंधी।समय मुकर्रर हुआ।भीड़ जुट गई कि स्वर्गवासी भालू काका का पोता आज ऊंचे पेड़ से फल तोड़ लाएगा, भालू भाई और लोमड़ी काकी उसे ऊपर तक पहुंचने में मदद करेंगे। पर यह क्या.....?समय गुजरते निकल गया।न भालू काका आये,न लोमड़ी काकी। बेचारा बाप मन मसोसता रहा। सारे…
Added by Manan Kumar singh on November 17, 2019 at 10:16am — 1 Comment
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