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Sushil Sarna's Blog (880)

दोहा पंचक. . . . .शीत

दोहा पंचक. . . . शीत

अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।

बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।

धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।

हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।

शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।

गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।

शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।

शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।

धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।

पहन चुनरिया ओस की,  भोर  करे शृंगार ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .मतभेद

दोहा पंचक. . . . मतभेद

इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।

चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।

मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।

एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।

रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।

सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।

मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।

सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।

जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।

जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

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Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

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Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविध

देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।

कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

धर्म - कर्म  ईमान सब, बेमतलब की बात ।

क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।

आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।

अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।

नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।

प्यार नहीं है  जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . करवाचौथ

दोहा पंचक. . . . करवाचौथ

चली सुहागन चाँद का, करने को दीदार ।

खैर सजन की चाँद से, माँगे बारम्बार ।।

सधवा ढूँढे चाँद को, विभावरी में आज ।

नहीं प्रतीक्षा का उसे, भाता यह अंदाज ।।

पावन करवा चौथ का, आया है त्योहार ।

सधवा देखे चाँद को, कर सोलह शृंगार ।।

अद्भुत करवा चौथ का, होता है त्योहार ।

निर्जल रह कर माँगती, अपने पति का प्यार ।।

भरा माँग में उम्र भर , रहे सदा सिन्दूर ।

हरदम दमके आँख में , सदा सजन का नूर ।।

 

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on October 20, 2024 at 3:13pm — 3 Comments

दोहा सप्तक. . . . संबंध

दोहा सप्तक. . . . संबंध

पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।

थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।

अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।

तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।

खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।

आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।

अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।

उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।

पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।

जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।

जरा- जरा सी बात पर,…

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Added by Sushil Sarna on September 23, 2024 at 3:41pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . दरिंदगी

दोहा पंचक. . . . . दरिंदगी

चाहे जिसको नोचते, वहशी कामुक लोग ।

फैल वासना का रहा , अजब घृणित यह रोग ।।

बेबस अबला क्या करे, जब कामुक लूटें लाज ।

रोज -रोज  इस कृत्य से, घायल हुआ समाज ।।

अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।

जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।

नजरें नीची लाज की, वहशी करता मौज ।

खुलेआम ही हो रहा, घृणित तमाशा रोज ।।

छलनी सब सपने हुए, छलनी हुआ शरीर ।

कौन सुने संसार में, अबला  अंतस  पीर ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on September 20, 2024 at 3:58pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . . विविध

चढ़ते सूरज को सदा, करते सभी सलाम।

साँझ ढले तो भानु की, बीते तनहा शाम।।

भोर यहाँ बेनाम है, साँझ यहाँ गुमनाम ।

जिस्मों के बाजार में, हमदर्दी नाकाम ।।

छीना झपटी हो रही, किस पर हो विश्वास ।

रहबर ही देने लगे,  अपनों को संत्रास ।।

तनहाई के दौर में, यादों का है शोर ।

जुड़ी हुई है ख्वाब से, उसी ख्वाब की डोर ।।

मुझसे  ऊँचा क्यों भला,  उसका हो प्रासाद ।

यही सोचकर रात -दिन, सदा बढ़े  अवसाद ।।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on September 17, 2024 at 2:46pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।

सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।

 

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।

धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।

 

मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।

नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।

 

आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।

रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।

 

रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।

स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल…

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Added by Sushil Sarna on September 11, 2024 at 1:00pm — 2 Comments

दोहा त्रयी .....वेदना

दोहा त्रयी. . . . वेदना

धीरे-धीरे ढह गए, रिश्तों के सब दुर्ग ।
बिखरे घर को देखते, घर के बड़े बुजुर्ग ।।

विगत काल की वेदना, देती है संताप ।
तनहा आँखों का भला , सुनता कौन विलाप ।।

बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।

सुशील सरना / 28-8-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 28, 2024 at 2:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . प्रेम

दोहा पंचक. . . . प्रेम

प्रेम चेतना सूक्ष्म की, प्रेम प्रखर आलोक ।

प्रेम पृष्ठ है स्वप्न का, प्रेम न बदले मोक । ।

( मोक = केंचुल )

प्रेम स्वप्न परिधान है, प्रेम श्वांस की शान ।

प्रेम अमर इस भाव के , मिटते नहीं निशान ।।

प्रेम न माने जीत को, प्रेम न माने हार  ।

जीवन देता प्रेम को, एक शब्द स्वीकार ।।

प्रेम सदा निष्काम का , मिले सुखद  परिणाम ।

दूषित करती वासना, इसके रूप तमाम ।।

अटल सत्य संसार का, अविनाशी है प्रेम ।

भाव…

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Added by Sushil Sarna on August 25, 2024 at 3:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . . असली - नकली

दोहा पंचक .....  असली -नकली

हंस भेस में आजकल, कौआ बाँटे ज्ञान ।

पीतल सोना एक से, कैसे हो पहचान ।।

अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।

कौन किसी के वास्ते,  आज माँगता खैर ।।

अच्छी लगती झूठ की, वर्तमान में छाँव ।

चैन मगर मिलता वहाँ, जहाँ सत्य  की ठाँव ।।

धोखा देती है बहुत, अधरों की मुस्कान ।

मन में क्या है भेद कब, होती यह पहचान ।।

रिश्तों में  बुझता नहीं, अब नफरत  का दीप ।

दुर्गंधित जल में नहीं, मिलते मुक्ता सीप…

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Added by Sushil Sarna on August 23, 2024 at 4:41pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .बारिश का कह्र

दोहा पंचक. . . . . बारिश का कह्र

अविरल होती बारिशें, अब देती हैं घाव ।

बारिश में घर बह गए, शेष नयन में स्राव ।।

निर्मम बारिश ने किया, निर्धन का वो हाल ।

झोपड़ की छत उड़ गई, जीवन बना सवाल ।।

अस्त- व्यस्त जीवन हुआ, बारिश से चहुँ ओर ।

जन जीवन नुकसान से, भीगे मन के छोर ।।

वर्षा का तांडव हुआ, बहे कई प्रासाद ।

शेष बचे अवशेष अब, बने भयंकर याद ।।

कैसे मंजर दे गया, बरसाती तूफान ।

जमींदोज पल में हुए , पक्के बड़े मकान…

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Added by Sushil Sarna on August 22, 2024 at 3:00pm — No Comments

दोहा त्रयी .....रंग

दोहा त्रयी. . . रंग

दृष्टिहीन की दृष्टि में, रंगहीन सब रंग ।
सुख-दुख की अनुभूतियाँ, चलती उसके संग । ।

रंगों को मत दीजिए, दृष्टि भरम का दोष ।
अन्तस के हर रंग का, मन करता  उद्घोष ।।

खुली पलक में झूठ के, दिखते अनगिन रंग ।
एक रंग रहता सदा, सच्चाई के संग ।।

सुशील सरना / 20-8-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 20, 2024 at 4:33pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . विविध

जीवन के अनुकूल कब, होते हैं हालात ।

अनचाहे मिलते सदा, जीवन में आघात ।।

अपना जिसको मानते, वो देता आघात ।

पल- पल बदले केंचुली ,यह आदम की जात ।।

कहने को हमदर्द सब, पूछें अपना हाल ।

वक्त पड़े तो छोड़ते, हाथों को तत्काल ।।

इच्छा के अनुरूप कब, जीवन चलता चाल ।

सौम्य वेश में पूछता, उत्तर रोज सवाल ।।

मीलों चलते साथ में, दे हाथों में हाथ ।

अनबन थोड़ी क्या हुई, तोड़ा जीवन साथ ।।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on August 16, 2024 at 8:37pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .परिवार

दोहा पंचक. . . . . परिवार

साँझे चूल्हों के नहीं , दिखते अब परिवार ।

रिश्तों में अब स्वार्थ की, खड़ी हुई दीवार ।।

पृथक- पृथक चूल्हे हुए, पृथक हुए परिवार ।

आँगन से ओझल हुए, खुशियों के त्यौहार ।

टुकड़े -टुकड़े हो गए, अब साँझे परिवार ।

इंतजार में बुझ गए, चूल्हों  के  अंगार ।।

दीवारों में खो गए, परिवारों के प्यार ।

कहाँ  गए वो कहकहे, कहाँ गए विस्तार ।।

सूना- सूना घर लगे, आँगन लगे उदास ।

मन को कुछ भाता नहीं,  रहे न अपने पास …

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Added by Sushil Sarna on August 9, 2024 at 9:59pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . ख्वाब

दोहा पंचक. . . . . ख्वाब(नुक्ते रहित सृजन )

कातिल उसकी हर अदा, कमसिन उसके ख्वाब ।

आतिश बन कर आ गया, भीगा हुआ शबाब ।।

रुक -रुक कर रुख पर गिरी, सावन की बरसात ।

छुप-छुप कर करती रही, नजर जिस्म से बात ।।

बार - बार गिरती रही, उड़ती हुई नकाब ।

प्यासी नजरों देखतीं, जैसे हसीन ख्वाब ।।

खड़ा रहा बरसात में  , भीगा एक शबाब  ।

रह - रह के होती रही, आशिक नज़र खराब ।।

भीगी बाला से हुआ, नजरों का संवाद ।

ख्वाबों से वो कर गई, इस दिल को आबाद…

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Added by Sushil Sarna on August 4, 2024 at 3:46pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . मोबाइल

दोहा सप्तक. . . . . मोबाइल

मोबाइल ने कर दिया, सचमुच बेड़ा गर्क ।

निजता पर देने लगे, युवा अनेकों तर्क । ।

मोबाइल के जाल में, उलझ गया संसार ।

सच्चा रिश्ता  अब यही , बाकी सब बेकार ।।

संवादों का बन गया, मोबाइल संसार ।

सांकेतिक रिश्ते हुए, बौना सच्चा प्यार ।।

प्यार जताने के सभी, बदल गए हालात ।

मोबाइल पर साजना , दर्शन दे साक्षात ।

मोबाइल पर कीजिए, चाहे घंटों बात ।

पत्नी की मत भूलना,पर लाना सौगात ।।

मोबाइल के भूत ने, रिश्ते किये…

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Added by Sushil Sarna on August 3, 2024 at 8:29pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . तूफान

दोहा पंचक. . . . . तूफान

चार कदम पर जिंदगी, बैठी थी चुपचाप ।

बारिश के संहार पर,करती बहुत विलाप ।।

रौद्र रूप बरसात का, लील गया सुख - चैन ।

रोते- रोते दिन कटा, रोते -रोते रैन ।।

कच्चे पक्के झोंपड़े , बारिश गई समेट ।

जन - जीवन तूफान के, चढ़ा वेग की भेंट ।।

मंजर वो तूफान का, कैसे करूँ बयान ।

खौफ मौत का कर गया,  आँखों को वीरान ।।

उड़ जाऐंगे होश जब, देखोगे तस्वीर ।

देख बाढ़ का  दृश्य वो , गया कलेजा चीर ।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on August 2, 2024 at 9:19pm — 4 Comments

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