किसी बुरी शै का असर देखता हूं ।
जिधर देखता हूं जहर देखता हूं ।।
रोशनी तो खो गई अंधेरों में जाकर।
अंधेरा ही शामो शहर देखता हूं ।।
किसी को किसी की खबर ही नहीं है।
जिसे देखता हूं बेखबर देखता हूं ।।
ये मुर्दा से जिस्म जिंदगी ढो रहे हैं।
हर तरफ ही ऐसा मंजर देखता हूं ।।
लापता है मंजिल मगर चल रहे हैं।
एक ऐसा अनोखा सफर देखता हूँ।।
चिताएं चली हैं खुद रही हैं कब्रें।
मरघट में बदलते घर देखता हूं ।।
परेशां हूं दर्पण ये क्या देखता…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on August 1, 2018 at 9:56pm — 4 Comments
कलम मेरी खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।।
सृजन की सरिता इससे बहती
झूठ नहीं ये सच है कहती।
जीवन के हर सुख-दुख में ये,…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on September 22, 2016 at 10:30am — 4 Comments
बर्फ की ये चादरी सफ़ेद ओढ़कर
पर्वतों की चोटियाँ बनी हैं रानियाँ
पत्ती पत्ती ठंड से ठिठुरने लगी,
फूल फूल देखिये हैं काँपते यहाँ ।
काँपती दिशाएँ भी हैं आज ठंड से,
बह रही हवा यहाँ बड़े घमंड से ।
बादलों से घिरा घिरा व्योम यूं लगे,
भरा भरा कपास से हो जैसे आसमाँ।। पर्वतों की .....
धरती भी गीत शीत के गा रही,
दिशा दिशा भी मंद मंद मुस्कुरा रही।
झरनों में बर्फ का संगीत बज उठा,
और हवा गा रही है अब रूबाईयाँ॥ पर्वतों की .....…
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on January 23, 2014 at 9:30pm — 5 Comments
नव निशा की बेला लेकर,
साँझ सलोनी जब घर आयी।
पूछा मैंने उससे क्यों तू ,
यह अँधियारा संग है लायी॥
सुंदर प्रकाश था धरा पर,
आलोकित थे सब दिग-दिगंत।
है प्रकाश विकास का वाहक,
क्यों करती तू इसका अंत॥
जीवन का नियम यही है,
उसने हँसकर मुझे बताया।
यदि प्रकाश के बाद न आए,
गहन तम की काली छाया॥
तो तुम कैसे जान सकोगे,
क्या महत्व होता प्रकाश का।
यदि विनाश न हो भू पर,
तो कैसे हो…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on July 28, 2013 at 11:00am — 6 Comments
तेरे अधरों की मुस्कान,
भरती मेरे तन में प्राण.
जीवन की ऊर्जा हो तुम,
साँसों की सरगम की तान.
मैं सीप तुम मेरा मोती ,
मैं दीपक तुम मेरी ज्योति.
कभी पूर्ण न मैं हो पाता ,
संग मेरे जो…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on June 30, 2013 at 9:00am — 20 Comments
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on July 23, 2012 at 10:29am — No Comments
(1)
पीर का सागर हृदय में, मन में भारी वेदना.
अश्रु भी छलके नयन से,शून्य हो गई चेतना.
टूटता है जब हृदय, यह दशा होती सभी की.
जाने कैसे सीखते हैं, लोग दिल से खेलना. ...
(2)
वक़्त की बेवफ़ाई पर तू, आज क्यों पछता रहा.
तू भी सदा वक़्त के संग खिलवाड ही करता रहा.
वक़्त ने तो चाहा हमेशा संग लेकर तुझको चलना,
आलसी बन तू ही बैठा, वक़्त तो चलता रहा. .
.
- प्रदीप बहुगुणा दर्पण
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 28, 2012 at 10:30am — 3 Comments
इन आंखों की गहराई में,
डूबा दिल दीवाना है.
मस्ती को छलकाती आंखें,
मय से भरा पैमाना हैं.
ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,
ये तो मन का दर्पण हैं .
दिल में उमड़ी भावनाओं का,
करती हर पल वर्णन हैं.
ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,
जीवन में ज्योति भरती हैं.
भटके मन को राह दिखाती,
पथ आलोकित करती हैं.
इन आंखों में डूब के प्यारे,
कौन भला निकलना चाहे.
ये आंखे तो वो आंखे हैं ,
जिनमें हर कोई बसना चाहे.
.…
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 13, 2012 at 5:08pm — 8 Comments
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on December 20, 2011 at 12:14pm — No Comments
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