सोचता है मनुष्य
खुदगर्ज होकर
नहीं है बङा कोई उससे
हरा सकता है वह
अपने तिकङमबाज दिमाग से
प्रकृति को भी
भरोसा होता है उसे बहुत ज्यादा
अपने तिकङमबाज मस्तिष्क पर
समर्थन भी कर देती है
उसकी इस सोच का
शुरुआती सफलताएँ
नहीं सोचता वह ये
होते हैं प्राण प्रकृति में भी
होती हैं भावनाएँ प्रकृति में भी
करता जाता है मनुष्य
प्रकृति का विनाश
अपनी तिकङमों से
अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु।
प्रकृति होती है नारी स्वरुपा…
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 4, 2013 at 2:00pm — 12 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 16, 2013 at 6:31pm — 8 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 12, 2013 at 7:17am — 8 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 25, 2013 at 10:40pm — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 22, 2013 at 11:49am — No Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 15, 2013 at 6:45pm — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 14, 2013 at 12:26pm — 4 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 10:51pm — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 10:42pm — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:03pm — 10 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:00am — 10 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 4, 2013 at 9:13pm — 2 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 1, 2013 at 10:38am — 9 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on February 28, 2013 at 12:49pm — 10 Comments
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