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समय चक्र परिवर्तन का हामी है.. क्या कीजियेगा..
रचना हेतु बधाई
अब क्या किया जावे सवीर जी, गो की धूलि अब उड़े नहीं, गोधुली वेला समझे नहीं
फिर से पेड़ पोधे उपजे, चरागाह बने गौशाला न रही
बिरकाली गाँव छोड़, सतबीर बीका के नगर आ रही
संध्या वक्त की संध्या, न जाप में न भजन सुनावही
गोधुली वेला का ध्यान दिलाने पर माँ का संद्या पर भजन की याद तजा हो गयी, हार्दिक बधाई स्वीकारे
माननीय श्री सतवीर वर्मा जी, सुप्रभात! सादर प्रणाम!!,आपकी कविता .गो धूली...‘गोधूली वेला है, पर गौ की धूली नहीं, जमाने के विकास तले खो गयी है!‘ वास्तव में शहरों का प्रदूषण अत्यधिक विकट समस्या है--- बहुत-बहुत बधाई !
अब तो शहर के लोग इन देशज शब्दों का मतलब भी नहीं समझ पायेंगे।
सत्य !
गोधूली वेला है
पर
गौ की धूली नहीं
जमाने के विकास तले
खो गयी है कहीं
गौ के खुरों की
गलीयों और
गाँव के ऊपर
उङती धूल
अब तो
नजर आती है
सिर्फ और सिर्फ
मोटरगाङियों के
टायरों की धूली
और
उनका धूम्र
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