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Gajendra shrotriya's Blog (7)

इक ही दिन काफ़ी नही है - ग़ज़ल

मातृ-दिवस विशेष

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2122/ 2122/2122/212

इक ही दिन काफ़ी नही है ममता के सम्मान को

कम पड़ेंगे सौ जनम भी, माँ तेरे गुणगान को

जो बना देती है क़ाबिल एक नन्हीं जान को

है ज़रूरत माँ कि ममता की बहुत इंसान को

लाख लानत भेजिए उस सरफिरे नादान को

माँ को खुद से दूर करके ढूँढे जो भगवान को

माँ का दिल इससे बड़ा है जिसमें तुम रहते मियाँ

नाज़ से देखो न अपने बंग्ले आलीशान…

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Added by Gajendra shrotriya on May 12, 2019 at 12:30pm — 3 Comments

मेरी दस्तार ख़ानदानी है- ग़ज़ल

2122/1212/22

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हार तूफ़ान से न मानी है

कश्ती ने तैरने कि ठानी है



मेरी पलकों पे ये जो पानी है

ऐ मुहब्बत तेरी निशानी है



हमने माना बहुत पुरानी है

पर बहुत ख़ूब ये कहानी है



दिल पे चस्पां है जो नही मिटती

यूूँ तेरी हर शबीह फानी है



राख मैं कर चुका तेरे ख़त को

याद लेकिन मुझे ज़बानी है



हर किसी दर पे ये नही झुकती

मेरी दस्तार ख़ानदानी है



पहली बारिश है तिफ़्ल बन…

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Added by Gajendra shrotriya on January 9, 2019 at 11:59am — 16 Comments

चेह्रा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे - तरही ग़ज़ल

221  2121 1221 212



राह- ए- बदी से हम कभी वाक़िफ़ नहीं रहे 

फिर भी तेरे निशाने पे वाइज़ हमीं रहे     

कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार

चहरा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे 



दिल के दियार की ज़रा रौनक बहाल हो

गर इस मकाँ में आप सा कोई मकीं रहे

कर इश्क या जगा दे तसव्वुफ़ तेरी रज़ा

ऐ दिल तेरे खिलाफ़ कभी हम नहीं रहे 



अब भी यहीं हैं फूल कली चाँद सब मगर

दिलकश तुम्हारे बाद ये उतने नहीं रहे



दिल के…

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Added by Gajendra shrotriya on December 6, 2017 at 8:30pm — 12 Comments

दिल बड़ा अपना बनाने की ज़रूरत आज है-ग़ज़ल

2122 /2122/ 2122 /212



दिल बड़ा अपना बनाने की ज़रूरत आज है

टूटते रिश्ते बचाने की ज़रुरत आज है



प्यार जितना है जताने की ज़रूरत आज है

अपनापन खुलकर दिखाने की ज़रूरत आज है



हँसते आँगन में पसर जाए न सन्नाटा कहीं

सब गिले शिकवे भुलाने की ज़रूरत आज है



दिल के रिश्तों को ज़ुबाँ से तोड़ना मुमकिन कहाँ

अपनों को अपना बनाने की ज़रूरत आज है



घर बनाना है अगर मज़बूत फिर खुद को हमे

नींव का पत्थर बनाने की ज़रूरत आज है



अपने हक़ की बात करना… Continue

Added by Gajendra shrotriya on November 5, 2017 at 7:00pm — 20 Comments

गज़ल- आज ढ़लती धूप सी हैं

2122/2122/2122/212



आज ढ़लती धूप सी हैं दादी नानी फिर कहाँ

तिफ़्ल सुनले चाँद परियों की कहानी फिर कहाँ



घर घरोंदे गुड्डे गुडिया राजा रानी फिर कहाँ

कश्तियाँ कागज की ये बारिश का पानी फिर कहाँ



छोड़ ये टीवी मोबाइल दौड़कर तितली पकड़

बचपना जी भरके जी ऐसी रवानी फिर कहाँ



पेड़ों की शाखें हैं सूनी खेल के मैदान चुप

जूझना हालात से सीखे जवानी फिर कहाँ



माँ के आंचल से पिता के कांधे तक फैली थी जो

बचपने की वो हुकूमत हुक्मरानी फिर… Continue

Added by Gajendra shrotriya on September 1, 2017 at 9:11pm — 16 Comments

ग़ज़ल - इक जलतरंग दिल में बजाकर चले गए

221 / 2121 / 1221 / 212



इक जलतरंग दिल में बजाकर चले गए

वो रंगे इश्क मुझपे चढ़ाकर चले गए



जैसे गुलाब की कली हो जाए संदली

ख़ुशबू फिज़ा में ऐसी मिलाकर चले गए



बादल उड़े फ़लक पे बने नक़्श वो हसीं

उस नाज़नीं की याद दिलाकर चले गए



मुस्कान दे गए मुझे बचपन के यार कुछ

मेरी उदासियों को चुराकर चले गए



जुगनू ही बनके रह गए सूरज कई यहाँ

कोरस में गीत कितने ही गाकर चले गए



क्यूं शम्स के उजाले ये नींदों के फूलों से

ख्वाबों की… Continue

Added by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 9:30pm — 21 Comments

एक नज़्म - रतजगे

एक नज़्म

रतजगे

इक खयाल दिल मे उठा

रात के सन्नाटे मे

मेरी नींदों को उड़ाकर

क्या वो भी जागी है

मैं ही बुनता हूँ उसके

ख्वाब या फिर

मेरे ख़याल से

वाबस्ता वो भी है

मेरे अश्कों के लबों पे

है बस सवाल यही

उसके तकिये पे भी

थोड़ी सी नमी है कि नहीं

रतजगों से है परेशान

अब मेरा बिस्तर

उसने भी काटी है क्या

कोई शब जगकर

मेरे ज़ेहन के दरीचों से…

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Added by Gajendra shrotriya on May 2, 2014 at 6:00am — 13 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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