221 2121 1221 212
राह- ए- बदी से हम कभी वाक़िफ़ नहीं रहे
फिर भी तेरे निशाने पे वाइज़ हमीं रहे
कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार
चहरा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे
दिल के दियार की ज़रा रौनक बहाल हो
गर इस मकाँ में आप सा कोई मकीं रहे
कर इश्क या जगा दे तसव्वुफ़ तेरी रज़ा
ऐ दिल तेरे खिलाफ़ कभी हम नहीं रहे
अब भी यहीं हैं फूल कली चाँद सब मगर
दिलकश तुम्हारे बाद ये उतने नहीं रहे
दिल के फ़लक पे ख़ूब सितारे अयाँ हैं पर
बनके यहाँ पे चाँद हमारा तुम्हीं रहे
सब है ख़ुदा के हाथ में सच है यही मगर
खुद पर भी ऐ बशर तुझे कुछ तो यकीं रहे
उलझा लिया है जीस्त के फ़ित्नों ने इस तरह
" ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे"
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपका आभारी हूँ आ.सुरेन्द्र नाथ जी।
धन्यवाद आ.लक्ष्मण धामी जी।
बहुत शुुक्रिया आ.Ram Awadh VIshwakarma जी।
उत्साहवर्धन हेेतु आपका आभारी हूूँ आ. Gurpreet Singh जी
आद0 गजेंद्र जी सादर अभिवादन, बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने, बहुत बहुत बधाई आपको।
हार्दिक बधाई
आदरणीय गजेन्द्र जी आपकी ग़ज़ल का हर शेर लाजबाब है। आपको बहुत बहुत बधाई।
वाह वाह आदरणीय गजेन्द्र जी,,बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ,,,,
आ० समर कबीर साहिब सादर अभिवादन ! ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ । आपके द्वारा निर्देशित सुधार कर रहा हूँ। सादर।
आ० अजय तिवारी जी सादर अभिवादन ! ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ । आपका सुझाव उपयुक्त हेै, तदनुसार संशोधन कर रहा हूँ। आगे भी आपके मार्गदर्शन का आकांक्षी हूंँ। सादर।
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