For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मजदूर को समर्पित एक रचना

पास उसके शक्ति श्रम की, पास उसके नूर है
वह जगत निर्माण करता अलहदा मजदूर है।।

घर खुला आकाश उसका औ शयन को है धरा
अस्थि पंजर शेष काया देख लगता अधमरा।।

भूख पीड़ित वो, नहीं कुछ और बातें सोचता
क्लेश चिन्ता दीनता तन रुग्ण यौवन नोचता।।

पास उसके पेट, भोजन चाहिए हर हाल में
ढूंढता जिसको फिरे वो ज़िन्दगी जंजाल में।।

वो बनाया ताज लेकिन नृप हुआ मशहूर है
जात क्या औ धर्म क्या मजदूर तो मजदूर है।।

पाँव में जूता नहीं कुरता फटा तन मौन है
पूछता खुद से हमेशा वो कि आख़िर कौन है।।

हर तरह से मार खाता क्योकि वो मजदूर है
जन्म से जो मौत तक केवल रहा मजबूर है।।

धूप में तपता कभी तो भीगता बरसात में
कपकपाता है सदा वो सर्दियों की रात में

उस समय बेबस बने राशन नहीं यदि पास है
फिर बिना उद्देश्य रखता अनवरत उपवास है।।

काल कवलित बाल बच्चे भूख से लाचार हो
दुर्दशा उस काल की वो खुद अगर बीमार हो।।

क्षुब्ध शोषित स्वेद लथपथ दम्भ चकनाचूर है
देखकर लगता यहीं क्यों वक़्त इतना क्रूर है।।

है श्रमिक औरत अगर ढकती सदा ही लाज को
दूर हो हर गिद्ध से करती दुरह सम काज को।।

वो हथौड़े को पटक के गिट्टियाँ गढ़ती दिखे
गर्भ में बच्चा लिए या सीढ़ियां चढ़ती दिखे।।

हाशिये पर वो पड़ी लड़ती पुरुष अभिमान से
यौन शोषण या दमन में नार जाती जान से।।

हो पुरुष या नार कोई मजदूर उसकी जात है
सुख विमुख आहार जिसका नून रोटी भात है।।

सम्पदा वह देश का निर्माण उसके नाम है
भीष्म सा ता-उम्र ही करता यहाँ संग्राम है।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:22am

आद0 अवनीश धर द्विवेदी जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए आभार। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:21am

आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। आपका सुझाव उत्तम है। कदाचित मैं इसे गीत में बदलना भी चाह रहा था पर कर न पाया। अगली बार कोशिश करूँगा। आभार आपका, सुझाव और आशीष देने के लिए।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:19am

आद0 विनय कुमार जी सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on May 7, 2020 at 7:55pm
बहुत उत्तम रचना महोदय।बधाई स्वीकार करें।
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 6, 2020 at 4:38pm

सुन्दर सृजन हुआ है , गीतिका छंदों में , इसे गीत का रूप दिया जा सकता था | गीतिका छंद में संभवतः १४,१२  पर यति का प्रावधान है | चूँकि आपने मात्रा पतन नहीं किया है तो यति रख सकते हैं | गीत का रूप देने के लिए  हर अन्तरे की अंतिम पंक्ति को मुखड़े से तुकांत करना होता है एवं समान मात्रा भार रखना होता है | हर अन्तरे की पंक्तियाँ भी बराबर रखनी आवश्यक है | 

Comment by विनय कुमार on May 6, 2020 at 12:56pm

बहुत बेहतरीन और सार्थक सृजन, बहुत बहुत बधाई आ सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी

Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2020 at 6:02am

आद0 सूबे सिंह सुजान जी सादर अभिवादन। कोटिश आभार आपका।

Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2020 at 6:02am

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपके सुझाव अनुसार बदल दिया। कोटिश आभार आपका। स्नेह बनाये रखे।सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 6, 2020 at 5:23am

बहुत गहर संवेदनशीलता रचना है बहुत बहुत बधाई हो आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on May 5, 2020 at 3:01pm

'कपकपाता है कभी जाड़े की ठंडी रात में'

इसका मात्रा भार भी 2122 2122 2122 212 ही है बस एक शब्द में मात्रा पतन किया है,इससे बचना है तो यूँ कर सकते हैं:-

'कपकपाता है सदा वो सर्दियों की रात में'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service