For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।

नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।

थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली  लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।

सुशील सरना / 20-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2021 at 2:10pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार सर । सर जिस त्रुटि की ओर आपने बताया है मैं भी शंकित था किन्तु जब शब्दकोश खंगाला तो द्वन्द्व और द्वन्द दोनों ही सही थे तो छन्द के तुकांत के रूप में मैंने द्वन्द को चुना । आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार आदरणीय । आपका हर सुझाव मेरी इस यात्रा का अमूल्य मील का पत्थर है ।सादर नमन सर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 31, 2021 at 11:45pm

आ० सुशील सरना जी, आपकी रचना-यात्रा वस्तुत: अभिभूत कर रही है. आपके छंद जिस ढंग से निरापद हैं, वह अत्यंत तोषदायी है. 

अलबत्ता, सुधार के जो बिंदु हैं, उनके प्रति सचेत करना, आपकी रचनात्मकता के प्रति सार्थक अनुमोदन होगा. 

आदरणीय, शुद्ध शब्द द्वंद्व है, न कि द्वंद.

ऐसे में तुकान्तता पर एक बार और एकाग्र होने की आवश्यकता है. 

बाकी, तीनों दोहों की महीनी रोचक तो है ही, आपकी रचनात्मकता के आयाम भी दर्शाती है. 

पुन:, वाह-वाह !! 

जय-जय 

Comment by Sushil Sarna on July 25, 2021 at 1:11pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम ।सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2021 at 11:59pm

वाह .. आपकी छांदसिक यात्रा के प्रति साधुवाद 

शुभातिशुभ

Comment by Sushil Sarna on July 22, 2021 at 3:39pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार । सर तीसरा दोहा एडिट से रह गया । अभी संशोधित करता हूँ सर । हार्दिक आभार सर ।
Comment by Sushil Sarna on July 22, 2021 at 3:37pm
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब - सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से आभारी है ।
Comment by Sushil Sarna on July 22, 2021 at 3:35pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
Comment by Chetan Prakash on July 21, 2021 at 8:09pm

आदाब, सुशील सरना जी, प्रथम दोनों दोहे अच्छे  लगे ! किन्तु आदरणीय  त्रयी  का अन्तिम  दोहे का तीसरा  चरण, " अच्छी लगी  संघर्ष  में" दोष पूर्ण है, चौदह  मात्राएं  हैं, सादर !

Comment by Samar kabeer on July 21, 2021 at 3:20pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे कहे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'नैनों से नैना करे'--'करे' को "करें" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 1:08pm

आ. भाई सुशील जी, अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service