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कुंडलिया. . . 

झोला  लेकर  हाथ  में, चले  अनोखे  लाल ।
भाव  देख  बाजार  के, बिगड़े  उनके  हाल ।
बिगड़े  उनके हाल ,करें क्या  आखिर  भाई ।
महंगाई  का    काल , खा   गया   पाई- पाई ।
कठिन दौर से  त्रस्त , अनोखे दर- दर डोला ।
लौटा   लेकर  साथ , अंत  में  खाली  झोला ।

सुशील सरना /7-5-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on June 2, 2024 at 6:50pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर
Comment by Sushil Sarna on June 2, 2024 at 6:49pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 2, 2024 at 1:18pm

आदरणीय सुशील सरना जी, मंहगाई पर व्यंग्य करता बढ़िया कुंडलियां छंद हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2024 at 7:36pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।

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