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दोहा पंचक. . . अपनत्व

दोहा पंचक. . . . .  अपनत्व

अपनों से मिलता नहीं,  अब अपनों सा प्यार ।
बदल गया है  आजकल,  आपस का व्यवहार ।।

अपने छूटे द्वेष में, कल्पित है व्यवहार ।
तनहा जीवन ढूँढता, अपनों का संसार ।।

क्षरण हुआ विश्वास का, बिखर गए संबंध ।
कहीं शून्य में खो  गई, अपनेपन की गंध ।।

तोड़ सको तो तोड़ दो, नफरत की दीवार ।
इसके पीछे है छुपा, अपनों का संसार ।।

आपस में अपनत्व का, उचित नहीं पाखंड ।
रिश्तों को अलगाव का, फिर मिलता है दंड ।।

सुशील सरना / 7-5-25

  1. मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna 12 hours ago

सादर नमन सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey yesterday

इतने वर्षों में आपने ओबीओ पर यही सीखा-समझा है, आदरणीय, 'मंच आपका, निर्णय आपके' ? 

फिर सभी सदस्यों का, आपका, क्या है ? 

ऐसी व्यंग्यात्मक टिप्पणी से ओबीओ के किसी हितैषी-सदस्य को प्रसन्नता तो नहीं ही होगी. कष्ट मुझे भी हुआ  है. लेकिन इसके दोषी भी तो हमीं हैं. हम पटल पर अपनी उपस्थिति को लेकर अपने में सुधार का प्रयास कर रहे हैं.

आदरणीय, आप भी अपनी प्रस्तुतियों, रचनाओं पर तार्किक अभ्यास करें.

सादर

Comment by Sushil Sarna yesterday

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मंच  आपका निर्णय  आपके । सादर नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey yesterday

आदरणीय सुशील सरना जी, आप आदरणीय योगराज भाईजी के कहे का मूल समझने का प्रयास करें। मैंने भी आपको इस संदर्भ में समझाने की कोशिश की है, कि हर प्रयास प्रकाशन योग्य ही हो, ऐसा हमेशा नहीं होता। 

यह अवश्य है कि अपना पटल तकनीकी समस्याओं से गुजर रहा है। सो हम इसे स्वीकार करें। 

आपको प्रसन्नता होगी, इस बार का छंदोत्सव दोहा छंद पर ही आधारित है।  आपसे उस आयोजन में रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा होगी। 

शुभातिशुभ 

Comment by Sushil Sarna yesterday

ठीक है आदरणीय योगराज जी । पोस्ट पर पाबन्दी पहली बार हुई है । मंच जैसा चाहे । बहरहाल भविष्य के लिए अवगत हुआ ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर yesterday

आ. सुशील सरना जी, कृपया 15-20 दोहे इकट्ठे डालकर पोस्ट किया करें, वह भी हफ्ते में एकाध बार. साईट में कुछ तकनीकी समस्या है, पोस्ट हुई रचना का नोटिफिकेशन हमे नहीं आता. आशा है कि आप हमारा सहयोग करेंगे.   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

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