For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार ।
नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।।

 

नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार ।
उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर  इकरार ।।

 

नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद ।
बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।।

 

नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार ।
कामुकता से है भरा, नजरों का संसार ।

 

नजरें ही करने लगी, नजरों से व्यापार ।
नजर पाश में हो गई, नजर बड़ी लाचार  ।।

 

नजरों में सिमटा रहा, नजरों का  इसरार ।
अन्तस के उन्माद को, नजर करे साकार ।।

 

नजर समर्पण से हुआ, नजरों को अहसास ।
नजर मिटाती दूरियाँ, नजर बढ़ाती प्यास ।।

 

सुशील सरना / 31-8-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 51

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 9, 2025 at 8:39pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं सहमत हूँ । भविष्य के सृजन में इन बिन्दुओं पर विशेष जोर रहेगा । हार्दिक आभार आदरणीय जी ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 8, 2025 at 2:37pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे प्रस्तुत किये हैं. 

इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई. 
 
एक बात मैं आपसे अकसर साझा करता रहता हूँ, आज पुनः साझा कर रहा हूँ. आपकी रचनाएँ हो जाने के बाद आपसे उचित समय माँगती हैं. लेकिन आप उन्हें अकसर निराश कर देते हैं.

 

वस्तुतः रचनाओं का होना और उन्हें प्रस्तुत किया जाना दोनों दो प्रक्रियाएँ हैं.

१. रचनाओं का होना विचार-कौंध का शाब्दिक होना है.

२. रचनाओं का प्रस्तुतीकरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर निर्भर करता है: 

            क. विधा-विधान के अनुपालन

            ख. विचार-कौंध के शब्दों के लिए व्याकरणसम्मत वाक्य विन्यास, तथा

            ग. विचार-कौंध के भाव को तर्कसम्मत संप्रेषणीयता 

ऐसे में बिन्दु संख्या २ पर ध्यान देना आवश्यक है. यह रचनाओं के पगाने की प्रक्रिया है. यह एक बार में संभव नहीं होता. कोई रचना शाब्दिक होने के बाद कई-कई स्तरों से गुजरती है. तभी कोई रचना अपने अंदर अपने अर्थबोध के सापेक्ष कई आयामों को साध पाती है. इसीसे रचनाओं में अभिधात्मक स्वरूप के अलावा व्यंजनाओं और लाक्षणाओं का शुमार हो पाता है. जिस कारण कोई रचना पद्यात्मक हो पाती है. यही रचनाओं की क्षमता और सामर्थ्य का द्योतक है. 

आपके प्रस्तुत दोहों में से कुछ को देखें.  

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई लाचार।  
नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। 

 

नजरों के मण्डी हो जाने पर नजर के लाचार होने को और बेहतर गठन दिया जा सकता था. नजर हुई लाचार किसी एक की व्यथा का इंगित है. इसे ’नजरों से व्यापार’ कर इसे व्यापक किया जा सकता है. या, ऐसा ही कुछ आप भी सोचें. दूसरा पद इसे सोच से और भी प्रभावी हो जाएगा.  

 

नजरों से छुपता नहीं,कभी नजर का प्यार ।
उठी नजर इंकार तो, झुकी नजर  इकरार ।। 

 

इस दोहे का पहला पद सामान्य है. और दूसरा पद तो बहुत-बहुत ही सामान्य है. कई पुराने फिल्मी गीतों का स्मरण हो आता है. ऐसी प्रस्तुतियाँ प्रारम्भिक प्रयासकर्ताओं से अपेक्षित होती है. 

 

नजरें समझें जो हुए, नजरों से संवाद ।
बिन बोले ही बोलते , नजरों के उन्माद ।। 

 

इस दोहे के कथ्य के तार्किक होने से इसका प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक है. 

 

नजरों को झूठी लगे, नजरों की मनुहार ।
कामुकता से है भरा, नजरों का संसार ।

 

इस दोहे का कथ्य ही स्पष्ट नहीं हो रहा, आदरणीय. नजरों का संसार ही कामुकता से भरा है, ऐसा कह कर आपने नजरों के सारे व्यवहार ही प्रश्नों के दायरे में ला दिया गया है. यह तो उचित नहीं है, भाई.  

 

नजरें ही करने लगी, नजरों से व्यापार ।
नजर पाश में हो गई, नजर बड़ी लाचार  ।।  ..........  जी, बढिया .. ... 

 

नजरों में सिमटा रहा, नजरों का  इसरार ।
अन्तस के उन्माद को, नजर करे साकार ।।  ..........  वाह वाह  

 

नजर समर्पण से हुआ, नजरों को अहसास ।
नजर मिटाती दूरियाँ, नजर बढ़ाती प्यास ।।

 

इन दोनों पदों के बीच क्या सम्बन्ध बन रहा है ? विशेषकर फले पद के सापेक्ष दूसरे पद के दोनों चरण क्या स्थापित कर रहे हैं ?

विश्वास है, आपने मेरे कहे को अन्यथा नहीं लिया होगा. 

शुभातिशुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2025 at 6:40pm

आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2025 at 6:50pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2025 at 6:07pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2025 at 12:33pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत सुन्दर सुझाव ।सहमत एवं संशोधित सर 

Comment by Chetan Prakash on September 2, 2025 at 6:23pm

अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का आकांक्षी है,  "बाजार को, आप, ' लाचार' से बदल सकते हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
14 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service