For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भ्रम जीने का पाल रहा हूं

भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
जग सा ही बदहाल रहा हूँ
फटा-चिटा कल टाल रहा हूँ
किसी ठूँठ सा जड़ित धरा पर
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 
हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई
पतझड़ पग जब फटी बिवाई
ओस कणों पर प्यास लुटाए ...
घूर्णित पथ बेहाल चला हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 
पतित-पंथ को जब भी देखा
दिखी कहाँ आशा की रेखा
बड़ी तपिश, था झीना ताना
फिर भी दुलकी चाल चला हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 
बूढ़ी गलियाँ, शहर, इमारत
छौंक गया चीलों का गारद
अब अपनी ही कब्र जोतकर
बीज कमल के डाल रहा हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ

 

 

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अशोक पुनमिया on August 22, 2012 at 1:52pm

बहुत ही सुन्दर रचना.

रचना का शिल्प,एक मंझे हुए रचनाकार का प्रतिबिम्ब साफ़-साफ़ दिखा देता है.
बधाई स्वीकारें.
Comment by राजेश 'मृदु' on August 22, 2012 at 1:24pm

रेखा जी, संदीप जी, सौरभ जी, बागी जी एवं अलबेला जी आप सबके उद्गार से बहुत सहारा मिला इसी तरह अपना स्‍नेह बनाए रखें । छंदसिक रचनाओं को लिखने के लिए बड़ी मेहनत लगती है और मेरे हिसाब से उसके लिए अनुभव भी होना चाहिए । इसपर थोड़ा सीखने के बाद प्रयास करूंगा, सादर

Comment by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 1:06pm

बूढ़ी गलियाँ, शहर, इमारत
छौंक गया चीलों का गारद
अब अपनी ही कब्र जोतकर
बीज कमल के डाल रहा हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ,बहुत बढ़िया ,बधाई 

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:43pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय झा साहब
कविता में प्रवाह छंदात्मक सा जान पड़ता है
शब्द चयन भी बेजोड़ है रचना पढ़ते पढ़ते अपने आप ही प्रवाह पूर्ण वाह निकल जाता है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 9:30pm

भाई राजेश झाजी, आपकी कविताएँ सांस्कारिक हुआ करती हैं. यह उस दौर की याद दिलाती हैं जब रचनाएँ शुद्ध भावों का सम्यक प्रवाह हुआ करती थीं. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

आदरणीय अलबेलाजी ने कब्र खोदना  मुहावरे को ही रखने का सुझाव दिया है, लेकिन मेरा मत आपके साथ है. कविता की भाव-दशा के अनुसार कब्र जोतना  एक सही प्रयोग है. 

वैसे आपका छंदसिक रचनाओं पर भी हाथ आजमाना श्रेयस्कर होगा, राजेश भाईजी.

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2012 at 9:26pm

वाह वाह आदरणीय राजेश कुमार जी, क्या खुबसूरत कविता कि प्रस्तुति, कथ्य, शिल्प, भाव सब उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार कीजिये |

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 8:35pm

वाह वाह
क्या कहने  इस गीत के.........वाह !
बहुत खूब

हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई
पतझड़ पग जब फटी बिवाई

ओस कणों पर प्यास लुटाए ...

घूर्णित पथ बेहाल चला हूं
भ्रम जीने का पाल रहा हूं

__हाय हाय हाय मज़ा आगया ......बस एक बात थोड़ी खटकी.........मेरे ख्याल से कब्र को  जोतने के बजाय सिर्फ़ खोद ही देते तो बेहतर था, ऐसा मेरा निजी विचार है ..बुरा नहीं मानना भाई...वैसे अपने भी कुछ सोच के ही लिखा होगा

बहरहाल  बधाई !
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service