For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

==========दोहे=========== 

मैं है सूचक दंभ का, मैं ही एक असाधु
इस मैं को जो हम करे, हो जाए वो साधु

परहित गंगा कर्म की, सुधिजन जाने मर्म
लोभ मोह है गंदगी, निंदा नीच निधर्म

देवी माता गौ धरा, नारी के उपमान
हाथ जोड़ इनका करें, सब आदर सम्मान

अज्ञानी बेशर्म जस, कट कट बढती बेल
ज्ञानी काटे बेल को, कभी न हो फिर मेल

उल्लू डोले रात भर, अंधियारा ही भाय
मूरख काली कोठरी, बैठ उजाला खाय

मँहगाई सुरसा भयी, दिन दिन दुगनी होय
विचरे हाहाकार कर, हनुमत दिखे न कोय

मूरख है ब्रह्मास्त्र सा, पल पल मारे धीर
क्रोध करे धीरज तजे, हारे इससे वीर

गुरुजन सावन माह से, शंक जेठ का ताप
ज्ञान वृष्टि करके गुरु, हरे सकल संताप

नाते सब ही मानते, फिर भी जाते भूल
सुन्दर सृष्टि का यहाँ, केवल नारी मूल

कलयुग की माया बड़ी, रखना खुद से आस
अपने भी छोड़ें नहीं, करना खूब प्रयास

संदीप पटेल "दीप"

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:34pm

बहुत सुंदर दोहे.....

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 5:19pm

बहुत बढ़िया जी ...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 4:06pm

 आदरणीय विशाल जी , बंधुवर अनंत जी दोहों की सराहना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:38am

वाह इतने सधे हुए दोहे हैं कि पढ़ते-पढ़ते आनंद आ गया, दोहों का यह सुन्दर रूप देखते ही बनता है हार्दिक बधाई.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on January 16, 2013 at 9:38pm

वाह - वाह - वाह.........हर दोहा एक संदेश - एक दर्शन लिये हुए है.........अत्यन्त सुन्दर एवं सार्थक प्रयास रहा ये आपका संदीप भाई......खासकर ये २ दोहे तो विशेष सराहनीय लगे.........कि...........

अज्ञानी बेशर्म जस, कट कट बढती बेल 
ज्ञानी काटे बेल को, कभी न हो फिर मेल

उल्लू डोले रात भर, अंधियारा ही भाय 
मूरख काली कोठरी, बैठ उजाला खाय

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 7:04pm

आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम
बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस वाह वाह के लिए
सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 16, 2013 at 5:03pm

आदरणीय संदीप जी 

सादर 

दोहे वाह दोहे 

दोहते रहिये 

बधाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 4:06pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी , आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी ,आदरणीय राजेश झा जी , आदरणीय लक्षमण सर जी , आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम 
आपको सभी को दोहे अच्छे लगे और आप सभी से सरहना पाकर लेखन कर्म सुफल हो गया 
आदरणीय गुरदेव के कहे को जल्द ही पूरा करने का प्रयास करूँगा 
अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by राजेश 'मृदु' on January 16, 2013 at 2:27pm

वाह संदीप जी बहुत ही शानदार दोहे लिखे हैं

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 16, 2013 at 11:18am
बेहद सुन्दर और आदर्श दोहों के लिए हार्दिक साधुवाद भाई श्री संदीप कुमार पटेल जी 
निम्न दोहे तो बेहद ही उम्दा लगे, दिल से हार्दिक बधाई 
मैं है सूचक दंभ का, मैं ही एक असाधु 

इस मैं को जो हम करे, हो जाए वो साधु


देवी माता गौ धरा, नारी के उपमान 
हाथ जोड़ इनका करें, सब आदर सम्मान

अज्ञानी बेशर्म जस, कट कट बढती बेल 
ज्ञानी काटे बेल को, कभी न हो फिर मेल

उल्लू डोले रात भर, अंधियारा ही भाय 
मूरख काली कोठरी, बैठ उजाला खाय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service