For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच

बस चंद कदमों का फासला रहा

न मै जल्दी आया कभी

न कभी तुमने इंतज़ार किया

ये फासला ही तो था

जिसे हमने

संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया

फासले को

सिमटने नहीं दिया

और न ही

मिटने दिया

हम जुड़े रहे

फासले के साथ

बावजूद

तमाम मुश्किलों और तकलीफ़ों के

वो जिंदा रहा हमारे बीच

फासला बनकर  

और हम

मरते रहे, मरते रहे, मरते रहे

अपनेअपने अहम के साथ ...

Views: 568

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on February 4, 2013 at 10:03pm

बहुत शुक्रिया उपासना जी ....

Comment by upasna siag on February 4, 2013 at 3:13pm

बहुत सुन्दर रचना ......

Comment by नादिर ख़ान on February 3, 2013 at 9:59pm

भाई अशोक रक्ताले जी आपने रचना के भाव को सराहा 

आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 3, 2013 at 9:35pm

आदरणीय नादिर खान साहब सादर,अहम् के परिणाम को बखूबी बताती सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें.

दीवारें जब अहम् की, बनती हैं जंजीर,

होते तब दो दिल जुदा,कैसी ये तकदीर/

Comment by नादिर ख़ान on February 3, 2013 at 7:21pm

महिमा जी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ।

Comment by नादिर ख़ान on February 3, 2013 at 7:20pm

अदरणीय सौरभ जी आप ने रचना को सराहा बहुत शुक्रिया । 

यकीनन फ़ासला ही शुद्ध शब्द है 

आपका तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 6:13am

आदरणीय नादिर भाई, पंक्ति-दर-पंक्ति बड़े गहरे उतरते गये हैं. बहुत-बहुत बधाई. अहं की एक कोर पकड़ चलना जीवन में क्या से क्या रीत जाने का कारण हो जाता है ! भाव निखर कर आये है.

एकबात : शुद्ध शब्द क्या है .. फासला या फांसला ? मैं फासला ही जानता हूँ.

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 11:19pm

तमाम मुश्किलों और तकलीफ़ों के

वो जिंदा रहा हमारे बीच

फांसला बनकर  

और हम

मरते रहे, मरते रहे, मरते रहे

अपनेअपने अहम ...

क्या बात है  आदरणीय नादिर जी .. बहुत -२ बधाई इस सच्ची अभिवयक्ति के लिए  

Comment by नादिर ख़ान on February 2, 2013 at 10:44pm

अदरणीय

प्राची जी,विनय जी ,लक्ष्मण जी ,पाठक जी ,संदीप जी एवं राजेश कुमारी जी

आप सभी ने रचना को सराहा

बहुत-बहुत शुक्रिया..

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 9:22pm

अहम् जीवन की ख़ुशी का सबसे बड़ा शत्रु है यदि प्रेम के बीच आ जाएगा तो फांसले बढ़ ही जायेंगे ,बहुत अच्छी प्रस्तुति  नादिर जी बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
51 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
5 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service