For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हल्की- सी पवन क्या चली..
पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !
नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,
और सखुए के पत्तों ने..
पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !

चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..
सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,
काम कम पर शोर ज्यादा ,
सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !

तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,
रवि ने ली जम्हाई,
तारे भी थके से थे,
उन्होंने अपनी बाती बुझाई !

शशि को तो मही से है प्रेम ..
वह तो है अलबेला ,
मही को नैनों में रख ,
उसने प्रकृति के नियमों को धकेला !!

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!

यह सपनों सा आसमान
यह महकी-सी हवा
चिड़ियों की चहचहाहट
पत्तों की सरसराहट
और....
मेरे मन ने मुझसे कहा..
ऐसे मंजुल धरा से
किसे दूर जाना है भला.. .

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anwesha Anjushree on February 6, 2013 at 6:39pm

 Sourabh ji M not ambitious .I write as I feel good...I know M not writing that great ....I hope my God will forgive me for my weaknesses...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 10:51pm

जी अन्वेषाजी, आप सही करती हैं.

सादर

Comment by Anwesha Anjushree on February 5, 2013 at 6:54pm

सौरभ जी शुक्रिया फिर से! प्रातः सैर पर निकल कर जो अहसास आया, लिख डाला ...न छंद मिलाया, न कोशिश की। कविता मेरे लिए जीवन का लय है, बस आती है, जाती है, जो शब्द उस पल मन को भाते है, लिख देती हूँ !  नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 6:47am

प्रकृति-सुषमा का सुन्दर शब्द-चित्र ! दृश्यों के शब्द-रूप निखरे हुए हैं.

मुझे मोहनलाल महतो ’वियोगी’ जी की अमर कृति याद हो आयी. काश आपकी पंक्तियाँ भी सरस कथ्य के साथ-साथ सरस प्रवाह में होतीं. बहरहाल, एक सुन्दर और कोमल कविता के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Anwesha Anjushree on February 4, 2013 at 10:21pm

Shukriya Vijay Nikore ji , Ram Shiromani ji , Prachi ji , Laxman Prasad ji aur Rajesh kumari ji....bahut bahut shukriya protsahan ke liye...abhar


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 5:16pm

प्राकृतिक छटा कि कितनी सुंदर रचना लिखी है सभी बिंब चटकते हुए शब्द शब्द हँसते हुए ,बहुत सुंदर कल्पना बधाई अन्वेशा जी  

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!-----

इन शब्दों से मुझे अपनी कविता कि एक पंक्ति याद आई--

जब मेरे उपवन में पाँव पड़े तेरे मखमली घास ने गर्दन झुका दी,

   पीत पुहुपो ने करतल ध्वनि की पल्लवों ने हौले हौले हवा दी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2013 at 4:09pm

बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति प्रक्रति को समझती -

यह महकी-सी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट ,पत्तों की सरसराहट

और....मेरे मन ने मुझसे कहा..ऐसे मंजुल धरा से किसे दूर जाना है भला :)- बहुत खूब, हार्दिक बधाई अन्वेषा अन्जुश्रीजी 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 3:59pm

बहुत मधुर अभिव्यक्ति, बेहद सुन्दर एहसास 

हार्दिक बधाई आ. अन्वेषा जी 

Comment by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 11:22am

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!

वाह वाह!!!!!!!!!!

सुन्दर अभिव्यक्ति।

Comment by vijay nikore on February 4, 2013 at 3:19am

 

        आदरणीया अन्वेषा जी,

        अभी-अभी आपकी "किसकी सदा" पर प्रतिक्रिया भेजते हुए

        हमने कहा कि ऐसी ही सुन्दर और भी कविताएँ लिखिए ....

        हमें नहीं पता था कि हमारे भाग्य में आपकी एक और

        मार्मिक कविता "मंजुल धारा" बस हमारे पढ़ने की

        प्रतीक्षा कर रही है। बधाई।

        हाँ, आपकी ऐसी ही और कविताओं की आस में,

        सस्नेह और सादर, बहन।

        विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service