For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको सरल बनाइये ।

पाषाण सा मैं कठोर हूँ मुझको तरल बनाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

मुझे शक है अपने आप पर बिश्वास भी खुद पर नहीं । 

मेरी पकड़ भी कमजोर है हाथों में  मेरे बल नहीं । 

मेरी वाहं कस कर थामिए मुझे लक्ष्य तक पहुंचाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

मै भटक रहा हूँ इधर उधर भटकन भी जन्म  जन्म की है । 

इस पार तो मझधार है उस पार राह सनम की है । 

बन कर मेरे माझी प्रभु उस पार तक ले जाइए । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

कुंठित है मेरा मन प्रभु संसार के प्रहार से । 

घायल है मेरी आत्मा सर्बत्र दुःख की मार से । 

अपनी मधुर मुस्कान से मुझको मधुर बनाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

मेरा भार तेरे सर पे है क्यूँ भार अपने सर मै  लूं । 

मेरी फ़िक्र कर रहा है तू क्यूँ फ़िक्र मै अपनी करूँ । 

अनजान राहों में हे प्रभु मेरे हमसफ़र बन जाईये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये । 

पाषाण सा मैं कठोर हूँ मुझको तरल बनाइये । 

Views: 619

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 7:40pm

 

पाषाण सा मैं कठोर हूँ मुझको तरल बनाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

 आदरणीय मुकेश कुमार जी। बहुत बहुत बधाई सुंदर रचना हेतु।

Comment by vijay nikore on March 8, 2013 at 12:30pm

प्रार्थना से सींची हुई यह रचना अच्छी लगी।

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 8:55am

सदमार्ग पर जाने की राह में सुन्दर पंक्तियाँ. हादिक बधाई.

Comment by वेदिका on March 7, 2013 at 10:39pm

आदरणीय मुकेश कुमार सक्सेना जी!
सरल भावों से गठित सरल प्रार्थना, जिसे समझने के लिए ईश्वर को भी सरलता होगी।
शुभकामनायें
सादर वेदिका

Comment by बृजेश नीरज on March 7, 2013 at 10:20pm

सुन्दर भावों को लिए हुए प्रभु से यह प्रार्थना उन तक जरूर पहुंचेगी।

Comment by रविकर on March 7, 2013 at 5:02pm

बढ़िया है आदरणीय-
शुभकामनायें-
कुछ प्रिंटिंग मिस्टेक है-
सुन्दर भाव

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 7, 2013 at 4:49pm

रचना एक अर्चना के रूप में कथ्य की द्रष्टि से अच्छी लगी, बधाई स्वीकारे श्री मुकेश कुमार सक्सेना जी, मुझको सरल बनाएइये,

मुझको तरल बनाइये वाह ! पर शेष छल कपट,भटकाव, अपने आप पर विश्वास, मधुर व्यवहार जैसे अलंकार हम्मरे सतत 

प्रयास और कर्म पर बहुत कुछ निर्भर करते है | इसके लिए स्वयं का आत्मबल मजबूत करने के हमें आवश्यकता है भाई 

श्री मुकेश सक्सेना जी, यह आप भी भली भाँती जानते है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
19 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service