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मक्का से राम और काशी से अल्लाह की भी अलख जगानी है

मंदिर से घंटी ,मस्जिद से अजान की आवाज पूरी दुनिया को सुनाई है ,

धर्म बांटने की हमने कसम उठाई है .


मदिर से हिन्दू ,मस्जिद से मुसलमान बनाने की फैक्ट्री बनाई है ,

धर्म प्रचारक हैं हमने  गजब जिम्मेदारी निभाई है


मंदिर नापाक कर  मुसलमान  ने ,मस्जिद तोड़  हिन्दू ने खुशियाँ  मनाई है

सबक सिखाने  की हमने कसम उठाई है .


अल्लाह और भगवान् ने खून की व्यवस्था सबमे  एक जैसी बनाई है ,

पर हमने तो खून को खून से अलग करने की कसम उठाई है.


राम और रहीम ने कब हिन्दू और मुसलमान की जात  बनाई है ,

फिर क्यूँ इंसान ने  इंसान पर जाती की तोहमत लगाई है


पंडित और मौलवियों ने तो गजब दुनिया बनाई है ,

पर  हमने भी काफिर और पापी होने की हिम्मत जुटाई है


अब मंदिर से अजान और मस्जिद से घंटी की भी मिठास सुनानी है,

मक्का से राम और काशी से अल्लाह की भी अलख जगानी है

 

                                          मौलिक व अप्रकाशित" कविता

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:45am

अब मंदिर से अजान और मस्जिद से घंटी की भी मिठास सुनानी है,

मक्का से राम और काशी से अल्लाह की भी अलख जगानी है

वो दिन जिस दिन आयेगा कोई भी मानव न तो स्वर्ग नही जन्नत जाएगा!

हार्दिक अभिनन्दन! 

Comment by विजय मिश्र on June 12, 2013 at 5:51pm

द्वन्द में समरसता की परिकल्पना ,बधाई स्वीकारें और ईश्वर करे कि धर्म मात्र मानव का ही शेष रहे .

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 7:38am

बहुत ही सुन्दर भाव लिए इस रचना के प्रयास पर आपको ढेरों बधाई आदरणीय!

Comment by aman kumar on June 10, 2013 at 3:53pm

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..

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