For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था  ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो
आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो 

उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे
तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो

आपका दिल है तो जैसा चाहिए कीजै सुलूक

परा ज़रा यह देखिए इसमें कोई रहता न हो

पत्थरों की ज़ात पर मैं कर रहा हूँ एतबार

अब मेरे जैसा भी कोई अक्ल का अँधा न हो

ज़िंदगी से खेलने वालों जरा यह कीजिए

ढूढिए ऐसा कोई जो आखिरश हारा न हो

वीनस केसरी

मौलिक एवं अप्रकाशित

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन / फ़ाइलान

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 18, 2013 at 5:59am

हाँ , वीनस भाई, सादर 

आपसे पूछे बिना - की कोशिश की है, शायद पसंद आये, दोनों अशआर अच्छे  हैं, इसलिए छोकर देख लिया। सादर 

आपका दिल है तो जैसा चाहिए कीजै सुलूक

झांक कर यह देखिए इसमें कोई रहता न हो

पत्थरों की बात  पर मैं कर रहा हूँ एतबार

अब मेरे जैसा भी कोई अक्ल का अँधा न हो

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 15, 2013 at 7:48am

इतने लम्बे अरसे के बाद आपके पुनरागमन पर आपका स्वागत है ..आपकी ग़ज़लों से बंचित रहे इसका खेद था ..आज इस बेहतरीन ग़ज़ल से आपने वो तमाम कमी पूरी कर दी ..आदरनीय सौरभ जी को जो शेर पसंद आया उसी शेर ने मुझे भी बेहद प्रभाबित किया ..ढेर सारी बधाई के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 11:31pm

ग़ज़ल की दुनिया में आना मेरे लिए होनी भर है. लेकिन खींच-खांच कर खुद को खखोरता रहता हूँ. इस खखोरन के क्रम में मेरी जो समझ बनी है वो यही है कि कोई दिलजला ही सफल ग़ज़लकार हो सकता है. भले दिल का जलना सोच से हो, अनुभव से हो या सापेक्ष व्यवहार से हो.

भाई आप इस दफ़े पूरे दिलजले लगे हैं. 

सारे अशार अपनी जगह,  इस शेर को निभा ले जाना मज़ाक है क्या -

पत्थरों की ज़ात पर मैं कर रहा हूँ एतबार

अब मेरे जैसा भी कोई अक्ल का अँधा न हो..

ग़ज़ब ग़ज़ब गज़ब

दाद क्या दूँ, अभी वाह-वाह करने दीजिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 14, 2013 at 10:49pm

बहुत खूबसूरत गज़ल कही है वीनस जी 

बहुत बहुत शुभकामनाएँ 

Comment by aman kumar on August 14, 2013 at 10:45am

आपका इंतजार था सच मे इंतजार का फल मीठा होता है ....

एक और उम्दा ग़ज़ल ..

Comment by Abhinav Arun on August 13, 2013 at 8:06pm

आफरीन आफरीन श्री वीनस जी !!

बेहद उम्दा ,दिल छू लेने वाले कलाम से नवाज़ा ..जनाब बहुत बहुत शुक्रिया ..हर शेर लाजवाब कसा हुआ क्या कहने ..

और शेर पर मेरी और से दिली मुबारकबाद -

पत्थरों की ज़ात पर मैं कर रहा हूँ एतबार

अब मेरे जैसा भी कोई अक्ल का अँधा न हो

वाह वाह !!

Comment by विजय मिश्र on August 13, 2013 at 4:15pm
बहुत सुंदर भाई वीनसजी .बधाई लें .
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 13, 2013 at 10:25am

आदरणीय वीनस भाई जी इतने महीनो से आपने हम सबको अपनी ग़ज़लों से वंचित रखा इस कष्ट तो था किन्तु आपकी इस शानदार लाजवाब ग़ज़ल नें सारा कष्ट दूर कर दिया, भाई जी सभी के सभी अशआर बहुत ही सुन्दर और धारदार हुए हैं किन्तु इस शेर ने ह्रदय लूट लिया भाई इस शेर हेतु विशेषतौर से बधाई स्वीकारें.

आपका दिल है तो जैसा चाहिए कीजै सुलूक

परा ज़रा यह देखिए इसमें कोई रहता न हो... वाह वाह वाह इस शेर की सादगी लूट गई.

Comment by कल्पना रामानी on August 13, 2013 at 9:48am

आपका दिल है तो जैसा चाहिए कीजै सुलूक

परा ज़रा यह देखिए इसमें कोई रहता न हो

पत्थरों की ज़ात पर मैं कर रहा हूँ एतबार

अब मेरे जैसा भी कोई अक्ल का अँधा न हो,,,,,,,,बहुत सुंदर! वीनस जी हार्दिक बधाई

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 13, 2013 at 12:05am

आपका दिल है तो जैसा चाहिए कीजै सुलूक

परा ज़रा यह देखिए इसमें कोई रहता न हो |  वाह वाह !!!

खूबसूरत ग़ज़ल भाई जी !
दिली दाद क़ुबूल कीजिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service