For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फासलों की 

हर पर्त को चीरते 

चंद शब्द...

जिनका चेहरा,

कभी दिखाई ही नहीं देता..

आखिर देखूँ भी तो क्यों ?

लुका छिपी में उलझाते मुखौटे  !

जिनकी आवाज,

कभी सुनायी ही नहीं देती..

आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?

कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़  !

जिनके अर्थ,

कभी बूझने नहीं होते..

आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?

सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !

जबकि,

हृदय गुहा में 

अंकित होते हों..

मुखौटों की कृत्रिमता से 

सदा सर्वदा अस्पृष्ट..

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये

उसके चंद शब्द !!

Views: 1223

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 26, 2013 at 7:09pm

आदरणीय सौरभ जी ,

एक बार गुरुमुख से सुना था "जो हम महसूस करते हैं सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर वो कभी मैनीपुलेटेड नहीं हो सकता... कोई व्यक्ति अपने शब्दों के साथ तो बनावटी या कृत्रिम् हो सकता है, पर जो ऊर्जा वो संप्रेषित करता है वो कभी चाह कर भी उसे कृत्रिम नहीं कर सकता" 

उस विषयवस्तु पर यथार्थ अनुभव प्राप्त करने के प्रयासों नें इस अभिव्यक्ति को यह स्वरुप दिया है.

आपको सम्प्रेषण शिल्प संतुष्ट कर सके, यह जानना लेखनी के लिए आवश्यक प्रोत्साहन है..

आपका धन्यवाद आदरणीय 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 4:24pm

यह सर्व संभाव्य है किन्तु किसी-किसी को प्राप्य है. आपने आवरणों और मिथ्याभरणों को जिस तरह से नकारने की बातें की हैं ऐसा समस्त तात्पर्यों से परे कोई भावमुग्ध ही कह सकता है. अनश्वर का झंकृत होना, स्थूल से सूक्ष्म की अनुभूति, सनातन के मूल से समादृत होना सौभाग्य तथा समर्पित प्रयास का सुफल है.

संप्रेषण में कसावट है. शिल्प के संदर्भ में अन्यान्य सटीक है.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 26, 2013 at 3:15pm

आ० वंदना जी 

अभिव्यक्ति पर आपकी टिप्पणी सम्प्रेषण को आश्वस्त करती है और उत्साहवर्धन भी. आपका हृदय से धन्यवाद 

'अस्पृष्ट' का अर्थ है जिसे स्पर्श किया ही ना जा सके , स्पर्श से परे 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 26, 2013 at 3:12pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

अभिव्यक्ति की सराहना के लिए आपका धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 26, 2013 at 3:09pm

प्रिय गीतिका जी 

अभिव्यक्ति को महसूस कर भाव सम्प्रेषण की सफलता पर अपनी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Vindu Babu on August 21, 2013 at 7:36pm
आदरणीया 'शब्द वृह्म है' उक्ति यथार्थ करती हुई आपकी यह रचना हृदयातल तक पैठ बनाने वाली है। वास्तव में कृत्रिमता के पीछे दौड़ने के कारण ही समाज दिशाहीन हो रहा है,हम क्यों इन मुखौटों के पीछे पड़े,एक न एक दिन सच्चाई गोचर होगी ही। उत्कृष्ट कथाय है।
अन्तिम बन्द में प्रयुक्त 'अस्पृष्ट' का अर्थ नहीं समझ सकी आदरेया।
आपको ढेरों बधाइयां इस सफल रचना के लिए और रक्षाबन्धन की भी।
सादर
Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:45pm

जबकि,

हृदय गुहा में 

अंकित होते हों..

मुखौटों की कृत्रिमता से 

सदा सर्वदा अस्पृष्ट..

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये

उसके चंद शब्द !!

आदरणीया प्राची जी  अतीव  सुन्दर ,अनुपम /////आपकी इस अनुपम लेखनी को बार बार नमन //सादर 

Comment by shubhra sharma on August 20, 2013 at 9:49am

आदरणीया डॉ प्राची जी , क्षमा करे , आपकी रचना पढ़ी जरूर थी पर अन्तर्निहित गूढ़|र्थ , ,जीवन दर्शन को आत्मसात नहीं कर सकी 

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 12:21am

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये ..... 

बहुत ही सुंदर और ह्रदयभेदी अभिव्यक्ति, वास्तव में प्रेम के सर्वोच्च आयाम पर पहुँच कर  किसी शब्द की आवश्यकता नही रह जाती|  ऊर्जित भाव स्पंदन ही सब कुछ है|

आप को हार्दिक बधाई इस सुंदर रचना हेतु 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 11:36pm

आ० शुभ्रा जी ,

रचना पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार!

आप शायद अभिव्यक्ति को सही से पढ़ नहीं पाईं..

इसमें किसी तरह के कृत्रिम या बनावटी व्यक्ति की सोच का चित्रण नहीं है..

बल्कि इसें तो हृदय में अथाह प्रेम को छुपाते और न जताते हुए व्यक्तित्व का वर्णन है, जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं सिर्फ भाव स्पंदन ही शब्दों से परे प्रेम को संप्रेषित करते हैं..

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. गुनीजनों की सलाह पर अवश्य…"
1 minute ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. समर सर की इस्लाह से तक़ाबुल ए रदीफ़ दूर हो गया है.शेर अब यूँ पढ़ा जाए .कड़कना बर्क़ का चर्बा…"
1 hour ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"वाह वाह वाह आदरणीय निलेश सर, बहुत समय बाद आपकी अपने अंदाज़ वाली ग़ज़ल पढ़ने को मिली। सारी ग़ज़ल…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. लक्ष्मण जी,वैसे तो आ. तिलकराज सर ने विस्तार से बातें लिखीं हैं फिर भी मैं थोड़ी गुस्ताखी करना…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलकराज कपूर जी, मैं सुधारने की कोशिश करता हूँ।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश जी फिलबदी है, कल आपकी ग़ज़ल में टिप्पणी के बाद लिखा है।"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,जल्दबाज़ी में मतले को परिवर्तित करने के चलते अभी संभावनाएं बन रही हैं कि समय के साथ…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. तिलकराज सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी ने संबल मिला है.मैं स्वयं के अशआर को बहुत कड़ी परीक्षा से…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"श्रद्धेय श्री तिलक राज कपूर जी, आप नाचीज़ की ग़ज़ल तक  पहुँचे, आपका अतिशय आभार, …"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service