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साथ उन से अब कहाँ से बात होगी ׀
दिन को दुनिया,और खुद से रात होगी ׀
डूबता ये आफताब हमें , बताये ,
साथ होए रौशनी, प्रभात होगी ׀
देखना जो बीजते हैं, धरत कांटे ,
जख्म फिर इस से मिली सौगात होगी ׀
बात ये बीती नहीं मुझ को है भाती,
ऐ! जमाने कब नई, फिर बात होगी ׀
क्या क्या हम को जमाना दे गया है,
क्या पता था प्यार भी खैरात होगी ׀
׀"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बेगोवाल सर इस प्रयास पर बधाई आपको
सराहनीय प्रयास हेतु बधाई
आदरणीय ये बहुत बेहतर प्रयास हुआ है , दिल से बधाई !!! बातें और सफाई से कहने का प्रयास करें !!!!
जी साहब ....मानी भी स्वतः स्फूर्त होना चाहिए ..पढ़ने के साथ ही ! ...आपके प्रयास की सराहना करता हूँ ...सादर
आदरणीय मोहन बेगोआल जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु कहन बेहद उलझा उलझा सा है । बधाई इस प्रयास हेतु ।
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