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ग़ज़ल -सिर हमारे इल्ज़ाम क्यों

2 1 2 2          2 2 1 2

.

दफ़्तरों में आराम क्यों

फाइलों में है काम क्यों

 

सुरमयी सी इक शाम है

फिर उदासी के नाम क्यों

 

कर गया वो करतूत पर

सिर हमारे  इल्ज़ाम क्यों

 

नाम चाहिए था उसको भी

हो गये हम गुमनाम क्यों

 

इश्क़ फ़रमाया उसने भी

सिर्फ हम ही बदनाम क्यों

 

काँटों की इस बस्ती में भी

वो बना है गुलफाम क्यों

.

.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on January 16, 2014 at 10:30pm

सुरमयी सी इक शाम है फिर उदासी के नाम क्यों नाम चाहिए था उसको भी हो गये हम गुमनाम क्यों

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 1:40pm

भाई अमित जी प्रयास अच्छा है किन्तु कथ्य शिल्प और प्रवाह में कमी है आपने तनिक जल्दबाजी कर दी है.

नाम चाहिए था उसको भी .. इस शेर की तक्तीअ पुनः कर लें.

हो गये हम गुमनाम क्यों

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 1:04pm

आदरणीय अमित जी ..छोटी बहर में बेहतरीन ग़ज़ल ..सादर बधाई 

Comment by अमित वागर्थ on December 9, 2013 at 9:58am

आदरणीय नीरज जी रचना अनुमोदन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार

Comment by अमित वागर्थ on December 9, 2013 at 9:57am

आदरणीय भंडारी जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

Comment by अमित वागर्थ on December 9, 2013 at 9:56am

आदरणीया कूंती जी रचना अनुमोदन हेतु आपका आभारी हूँ

Comment by अमित वागर्थ on December 9, 2013 at 9:54am

अदरणीया संजु जी आपका तहे-दिल से शुक्रिया

Comment by Neeraj Neer on December 9, 2013 at 9:24am

कर गया वो करतूत पर

सिर हमारे  इल्ज़ाम क्यों

 यही आज भारतीय लोकतंत्र की सच्चाई है .. 

बहुत सुन्दर .. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 8, 2013 at 4:07pm

आदरणीय अमित भाई , एक अच्छी गज़ल के लिये बधाई !!!!

Comment by coontee mukerji on December 8, 2013 at 4:00pm

नाम चाहिए था उसको भी

हो गये हम गुमनाम क्यों

 

इश्क़ फ़रमाया उसने भी

सिर्फ हम ही बदनाम क्यों..............बहुत खूब.

कृपया ध्यान दे...

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