For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी तो रोज़ गम ही बाँटती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122      2122

जब उजाला चाहते थे सब दिये से

क्यों अँधेरा बंट रहा है हाशिये से

 

था क्षणिक उन्माद मैं ये मान भी लूँ

मूँद लोगे आँखें क्या अपने किये से ?


बोझ से कोई गिरा, कोई नशे में  

फर्क मुश्किल है, पिये का बेपिये से


ज़िंदगी तो रोज़ आँसू बाँटती है

हम चुराते हैं हँसी हर वाक़िये से


ये इलाज -ए- जख्म कैसा हो रहा है

क्यों ज़ियादा दर्द होता है, सिये से


हाँ ग़ज़ल कहने की कोशिश है मेरी भी 
डर मगर लगता है  ऐसे  काफिये से

 

      **************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 5:43pm

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति से आनन्दित हूँ , उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 5:41pm

आदरणीय वीनस भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , गलतियाँ बताने के लिये । मतले मे सुधार करने से पूरी गज़ल मे सुधार करना पड़ेगा , अतः पूरी गज़ल संशोधन मे डाल रहा हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 5:39pm

आदरनीया प्राची जी , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 1:13am

बहुत कुछ कहा गया है .. चर्चा के ठोसपन पर मैं मुग्ध हूँ.

दिल से बधाई इस प्रयास पर, आदरणीय ..

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:35am

बेहद शानदार शेर है ... मजा आ गया ... वाह वा क्या कहने ...

ज़िन्दगी  तो रोज़ गम  ही बाँटती है

हम ही हँस लेते हैं हर इक वाक़िये में ... बस मिसरा उला में ही शब्द भर्ती का है

इसके मुकाबले ग़ज़ल के बाकी अशआर हल्के हैं ... ग़ज़ल और समय मांग रही है
मतले का उला रदीफ़ को बिलकुल नहीं निभा सका
हम  उजाला चाहते थे  हर दिये में
वाक्य यूँ सही होता
हम  उजाला चाहते थे हर दिये से

आज जीने दो मुझे हर लम्हा लम्हा ..... दूसरा लम्हा भर्ती का है हर लम्हा कहने से बात पूरी हो जाती है अथवा हर की जगह तुम कर लीजिये  
जब उर्दू अल्फाज़ पर इतना ध्यान रखते हैं तो ग़ज़ल में ज्यादा न बाँध कर ज़ियादा बांधना उचित होगा .. यहाँ बहर की भी दिक्कत नहीं थी

निलेश जी की इस्लाह दुरुस्त लगी ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 9:04am

आपकी प्रस्तुतियों का कथ्य मुझे हमेशा प्रभावित करता है..

इस ग़ज़ल के अशआर भी पसंद आये ..हार्दिक बधाई 

एक दो जगह कुछ संशय है ..

कोई  बोझे से गिरे थे कुछ नशे से.........................यहाँ कहन मुझे कुछ स्पष्ट नहीं लग रहा है 

फर्क  मुश्किल था पिये या बे पिये में

 

ज़िन्दगी  तो रोज़ गम  ही बाँटती है

हम ही हँस लेते हैं हर इक वाक़िये में............क्या हैं को गिरा कर लघु की तरह पढ़ा जा सकता है , मुझे संशय है, कृपया निवारण करें

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 11, 2013 at 4:54pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!

Comment by vijay nikore on December 11, 2013 at 7:39am

//ज़िन्दगी  तो रोज़ गम  ही बाँटती है

हम ही हँस लेते हैं हर इक वाक़िये में//  .... बहुत खूब !

 

बहुत लुत्फ़ आया आपकी गज़ल को पढ़ कर...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2013 at 4:11pm

आदरणीय नीलेश भाई , आपकी सलाह सही है , बोझ से कोई गिरा कोई नशे से , मिसरा स्वीकार करता हूँ !!!! बाक़ी बात रस कम होने की तो हमेशा एक जैसा मज़ा ला पाना मुश्किल काम होता है , प्रयास तो यही रहता है कुछ आप लोगों तक अच्छी बात पहुँचा सकूँ !!!  खैर अगली गज़ल मे फिर प्रयास करूंगा !!!!! // कृपया अन्यथा न लें //  ये आप मेरी रचना मे न लिखा करें , आपको विश्वास दिलाता हूँ मै कभी अन्यथा नही लूंगा !!!!! मै बस सीखता हूँ , जहाँ से भी सीख मिले !!!! आपका हार्दिक आभार !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2013 at 3:44pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , गज़ल पर आके मेरा उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
17 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
17 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह से लेखन को पूर्णता मिली। हार्दिक आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service