For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तक // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //

मुक्तक
-------
मै भी खुश और तुम भी खुश लेकिन दुखिया सारा संसार
कथनी करनी में भेद रखता कैसे हो सुखी परिवार
आओ मिल हम खुशियां बोयें उन्नत हो सकल संस्कार
टुकड़ों में हम बंटे है फिरते सबका एक जगत आधार
------------------------------------------------------
जिंदगी की भाग दौड़ में रास्ते बदल जाते हैं
लाख रंजिश सही मिलते ही कदम ठहर जाते हैं
आसां नही यूँ ही किसी को इस कदर भुला देना
जख्म इतने सीने में सूखते फिर हरे हो जाते हैं
------------------------------------------------------
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2014 at 11:28am

अब फिर से, क्या कहूँ? और क्यों?

आदरणीया प्राची जी . आज बहुत अच्छा लगा . कोई है अपना . जब नाती पोते मेरी मूँछ उखाड़ते हैं , दर्द भी होता है , मैं मना  नही करता और क्यों शब्द नही लगाता. बहुत कोशिश करता हूँ कि मात्रा  का प्रयोग करूँ, गेयता बनायें रखूँ. ईश्वर की मर्जी .

, क्या कहूँ? --पूरा अधिकार आपको है .

और क्यों? --ये निर्णय आप स्वयं में ही लें. 

सदेव आपका स्वागत है . मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं . 

सादर . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 10, 2014 at 5:23pm

आदरणीय 

'सिर्फ प्रयास पर बधाई दिया जाना' अपने आप में ही कुछ कमियों के अवश्य ही होने को इंगित करता है...

मुक्तक में सबसे ज्यादा प्रवाह आवश्यक है और ऐसा प्रवाह जो हर पंक्ति में समान गेयता लिए हुए हो..... समान गेयता के लिए बह्र की समझ या मात्रिकता का ज्ञान ज़रूरी है...जिसके लिए आपको पिछले एक दो साल से टोका जा रहा है...

और पंक्तियों में तुकांतता का निर्वहन कैसे किया जाना चाहिए..अब तक आपको इसके प्रति भी कई-कई बार कहा जा चुका है..

लेकिन.............................. अब फिर से, क्या कहूँ? और क्यों?

खैर, आपने मेरे चुप रह जाने को मान दिया... आपका ह्रदय से आभार आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2014 at 5:08pm

आदरणीया प्राची जी ,

सादर 

निश्चित तौर पर प्रयास किया है, कमी भी है. पर मंच की परम्परा के अनुसार कमी इंगित करते हुए ठीक करने का स्नेह अबकी बार आपके द्वारा नहीं दिया गया. 

आभार प्रोत्साहन हेतु 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 10, 2014 at 4:53pm

मुक्तक प्रयास पर बधाई आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2014 at 12:56pm

आदरणीय श्री विजय जी 

सादर 

आपका स्नेह है 

सादर आभार 

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 12:26pm

सार्थक मुक्तक लिखे हैं। बधाई।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2014 at 11:02am

आदरणीय श्री जितेन्द्र जी 

सादर सस्नेह 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2014 at 11:01am

आदरणीय श्री  लड़ीवाला जी 

सादर 

आपका स्नेह मेरे प्रति अभी भी बना है 

आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 8, 2014 at 9:51am

सुन्दर मुक्तक रचना के लिए बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 7, 2014 at 11:13pm

जीवन के प्रति एक सही सीख देती हुयी रचना ,आपकी  अनुभवी लेखनी को नमन आदरणीय प्रदीप जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service