For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(कामरूप छंद) नकल न करें-अकल लगायें -अखिलेशकृष्ण श्रीवास्तव

(1)

अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  व्याप्त भ्रष्टाचार ॥

              

(2)

नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥

*संशोधित 

########################

(मौलिक व अप्रकाशित)

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव     

धमतरी (छत्तीसगढ़),  

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 8, 2014 at 12:45pm

आदरणीय विजय  भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार 

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 12:37pm

सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 7, 2014 at 6:31pm

आ० अखिलेश श्रीवास्तव जी,

//एक बात और ... दंभ भरते के स्थान पर ......... " रंग जिन पर "  लिखें तो क्या और भी बेहतर होगा ? //

रंग जिन पर, यदि करते हैं तो व्याकरणिक रूप से पंक्ति अशुद्ध हो जाएगी 

ज़रा देखिये .... //अंग्रेजियत का , रंग जिन पर, क्या दिए संस्कार// ...................इस पंक्ति में तो दिए सही नहीं लगेगा या तो फिर 'क्या वो दें संस्कार' ऐसा कुछ होना चाहिए 

दूसरी बात ... 

अपनी ब्लॉग पोस्ट को तो रचनाकार ऑप्शन में जाकर स्वयं ही एडिट कर सकते हैं....बस रचना उसके बाद अप्रूवल में चली जाती है. बहराल...अब तो आपकी रचना संशोधित हो ही चुकी है.

सादर.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 12:35pm

आदरणीया कुंती जी,

सच कहती हैं भुगतना हर हाल में आम जनता को है, तरबूज तो वही है। नेताओं का कुछ बिगड़ता नहीं।

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार  

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 9:48am

आदरणीय जितेन्द्र भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार , सब कुछ ओबीओ से ही सीख रहा हूँ ।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 9:45am

आदरणीय लक्ष्मण भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 9:44am

आदरणीया प्राचीजी,

एडमिन महोदय से संशोधन हेतु अनुरोध के  24 घंटे बीत गये , शायद उस कक्ष में फिलहाल कोई नहीं है। 

एक बात और ... दंभ भरते के स्थान पर ......... " रंग जिन पर "  लिखें तो क्या और भी बेहतर होगा ? अगर ऐसा है तो वह भी कर दीजिए । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 7, 2014 at 8:57am

बहुत सुंदर ,हर एक विधा में आपकी रचनाओं का अंदाज, निराला होता है आदरणीय अखिलेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2014 at 5:36pm

सुन्दर और सामयिक छंद रचना पस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री अखेलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2014 at 12:57pm

आदरणीय बड़े भाई , बहुत सुन्दर कामरूप छंद रचना की है आपने , सुधार के बाद रचना और सुन्दर लगेगी !! आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
5 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service