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हम फिर से गुलाम हो जायेंगे

हमारे जीवन मूल्य
सरेआम नीलाम हो जायेंगें
हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..

स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

कहों ना ! जो सत्य है.
सत्य कहने से घबराते हो
सत्य अकाट्य है , अक्षत
छूपता नहीं छद्मावरण से
जो प्राचीन है , धुंधला,
गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.
टूटे हुए कलश, भंजित प्रतिमा
ध्वस्त अभिमान, लूटी स्त्रियाँ
नत सर .
ये इतिहास हैं.
ये सत्य हैं, अकाट्य , अक्षत,
गर्व करो या स्वीकारो
या उठा कर फ़ेंक आओ इन पन्नो को
अरब सागर की अतल गहराइयों में.
पर सत्य नहीं बदलेगा
सत्य नग्न होता है.
सत्य पे झूठ के आवरण
नाकाम हो जायेंगें.
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

……… Neeraj kumar neer
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2014 at 8:57am

हालात पर अफ़सोस करते उलाहने देने और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया से इतर यदि कुछ सदिश करते निर्देश भी निहित होते तो रचना की ऊर्जा सकारात्मक ग्राह्यता रखती..

वैसे कथ्य मनस को उद्वेलित करने में सक्षम है 

प्रस्तुत रचना पर हार्दिक बधाई 

Comment by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 11:19am

सुन्दर भावों से सजी इस प्रस्तुति के लिए  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीरज जी

Comment by vijay nikore on April 28, 2014 at 11:47am

बहुत ही सुन्दर भाव हैं।

एक सुझाव ... यदि रचना को अनुच्छेदों में विभक्त करते तो इसे पढ़ने का आनन्द और भी बढ़ जाता।

इस अच्छी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Neeraj Neer on April 26, 2014 at 5:46pm

आ जीतेन्द्र भाई बहुत बहुत आभार आपका..

Comment by Neeraj Neer on April 26, 2014 at 5:46pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:36pm

स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .
आदरणीय नीरज जी ..गीत के माध्यम से व्यक्त की गयी चिंता जायज है ..सचमुच दुखद है इस तरह सतत होता नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन ..सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 6:20pm

आदरणीय नीरज भाई , जीवन मूल्यों मे लगातार आते गिराव को देखते हुये आपकी आशंका निर्मूल नही है । सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2014 at 4:05pm

देश की बदलती परिस्थितियों पर सुन्दर रचना की है आदरणीय नीरज कुमार 'नीर' जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:52am

बहुत गहरे व् दूरदर्शी दृष्टिकोण से रची इस रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by coontee mukerji on April 23, 2014 at 4:23pm

हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .....बहुत सुंदर .  एक दूर्दर्शिता  का प्रमाण दिया है अपनी रचना  में. अनेक शुभकामानाएं.....सादर.

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