For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गौरैया

माँ ! आँगन में अपने

अब क्यों नहीं आती गौरैया

शाम सवेरे चीं चीं करती

अब क्यों नहीं गाती गौरैया

फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती

पास जाओ तो उड़ जाती

कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर

अब क्यों नहीं दिखती गौरैया

माँ बतला दो मुझ को

कहाँ खोगई  गौरैया ?

विकास के इस दौर में,बेटा !

मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा

काटे पेड़ और जंगल सारे

 और छीना पंछी का रैन बसेरा

रुठ गई हम से अब हरियाली

पत्थर का बन गया शहर

अब आँगन बचा न चौबारा

सब तरफ प्रदूषण का कहर

न कीट पतंगे न चुग्गा दाना

बिन पानी सूखे ताल तलैया

क्या खाएगी कहाँ रहेगी

बेचारी नन्हीं सी गौरैया

भीषण प्रदूषण के कारण

लुप्त हो रहे दुर्लभ प्राणी

दिखेगी कैसे अब आँगन में

बेटा ! नन्हीं प्यारी गौरैया 

  *****************

 महेश्वरी कनेरी

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 486

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 1:45pm

आदरणीया महेश्वरी जी ..आपकी चिंता बिलकुल जायज है ..गौरैया से सभी का लगाव है ..आपके दर्द को मैं महसूस कर सकता हूँ ..आपकी ये रचना शायद लोगों की सोच में परिवर्तन लाये ताकी ...गौरैया अपने अतीत के स्वर्णिम दिनों को प्राप्त कर सके ..सादर बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2014 at 1:43pm

आदरणीया महेश्वरीरी जी ,  प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ के प्रति आपकी चिंता उभर के सामने आ रही है , जो सही भी है ! आपको बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 8, 2014 at 8:11am

सच ! आज हमने क्या कुछ नही खोया है. बहुत मार्मिक रचना आदरणीया माहेश्वरी ज़ी बधाई  स्वीकारें

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 9:46pm

आदरणीया, आपकी चिंता वाजिब है ... पर मेरा अपना अनुभव है 

गौरैया आती है अभी भी, हमारे जगाने से पहले चीं चीं कर हमें जगाती है, दाना चुगती है हमें पास देख उड़ जाती है फुर्र ...पुन: लौटकर आती हमें बहलाती हैं ...उन्हें दाना (चावल) चाहिए और चाहिए पानी पास में कोई पेड़ पौधा हो फिर कोई नहीं उनका सानी ...हमें उन्हें बुलाना पड़ेगा दाना खिलाना पड़ेगा ...सादर!   

Comment by Vindu Babu on May 6, 2014 at 5:22am

आदरणीया महेश्वरी जी, आपने सत्य लिखा है और मार्मिक भी।

हार्दिक बधाई आपको।

सादर

Comment by Maheshwari Kaneri on May 5, 2014 at 6:35pm

आप सभी का बहुत बहुत आभार..

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 5, 2014 at 6:18pm

आदरणीया महेश्वरी जी
इस रचना मे बालसुलभ चंचलता, कौतूहूल, हमारा जीवन, बेतरतीब विकास और वातावरण की अनदेखी ..इन सब का सुंदर चित्रण किया है आपने. बहुत बहुत मुबारकबाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2014 at 9:03pm

कंक्रीट के शहर में पंची का बसेरा भला कैसे हो,  सुन्दर रचना......

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 11:04am

सुन्दर स्वाभाविक रचना मन को प्रभावित करती है। हार्दिक बधाई। सादर,

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:01am

बहुत मार्मिक रचना है. हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service