For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत:चलता सूरज रहा अकेला

नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला

घूमा अम्बर मिला न मेला,

चलता सूरज रहा अकेला.

--

गुरु मंगल सब चाँद सितारे,

अंधियारे में जलते सारे.

बृथा भटकता उनपर क्यों मन,

होगा उनका अपना जीवन.

कोई साथ नहीं देता जब,

निकला है दिनकर अलबेला.

..चलता सूरज रहा अकेला.

--

पीपल के थर्राते पात,

छुईमुई के सकुचाते गात.

ऊषा की ज्यो छाती लाली,

पुलकित हो जाती हरियाली.

सभी चाहते भोजन पानी,

जल थल पर है मचा बबेला.

चलता सूरज रहा अकेला.

--

 उड़ते उड़ते थके पखेरू,

कूद रहे घर बंधे बछेरू.

कलरव कोलाहल की धूम.

कुछ तरुओं पर मचा हुजूम.

एक तरफ थी भोर सिंदूरी,

एक तरफ है सुरमई बेला.

चलता सूरज रहा अकेला.

**हरिवल्लभ शर्मा दि. 24.09.2014

 

 

 

Views: 545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 12:43am

आदरणीय Santilal Karun जी आपकी मधुर प्रतिक्रिया पाकर मन पुलकित हुआ, आपका हार्दिक आभार,कृपया स्नेह बनाये रखें,सादर.

Comment by Santlal Karun on September 27, 2014 at 8:17pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी,

पूरा गीत सुमधुर और अर्थवान है , अति सुन्दर , सहृदय साधुवान एवं सद्भावनाएँ --

पीपल के थर्राते पात,

"छुईमुई के सकुचाते गात.

ऊषा की ज्यो छाती लाली,

पुलकित हो जाती हरियाली.

सभी चाहते भोजन पानी,

जल थल पर है मचा बबेला.

चलता सूरज रहा अकेला."

Comment by harivallabh sharma on September 25, 2014 at 11:19pm

आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपका स्नेह मिश्रित हुआ ..बहुत प्रोत्साहन दिया आपने आपका सादर आभार...स्नेह बनाये रखें.

Comment by harivallabh sharma on September 25, 2014 at 11:17pm

आदरणीय khursheed khairadi साहब आपने रचना पर जो स्नेह दिया निश्चित ही हौसला बढ़ा है....आपका हार्दिक आभार ..स्नेह बनाये रखें सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 6:54pm

ऐसा प्रवाहमान ,लय प्रधान नव गीत पढने को मिलेगा तो किसका मन झूम नहीं उठेगा ,वाह वाह और सिर्फ वाह ...बहुत बहुत बधाई आ० हरिवल्लभ शर्मा जी |

Comment by khursheed khairadi on September 25, 2014 at 9:28am

उड़ते उड़ते थके पखेरू,

कूद रहे घर बंधे बछेरू.

कलरव कोलाहल की धूम.

कुछ तरुओं पर मचा हुजूम.

एक तरफ थी भोर सिंदूरी,

एक तरफ है सुरमई बेला.

आदरणीय हरिवल्लभ जी बहुत सुन्दर गीत है ,सभी बंध सरस है |हार्दिक अभिनन्दन 

Comment by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 11:07pm

आदरणीया savitamishra जी हार्दिक आभार आपने रचना को मान दिया...

Comment by savitamishra on September 24, 2014 at 10:14pm

बहुत सुन्दर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service