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छन्न पकैया छन्न पकैया, काले धन का हल्ला ।
चोरों के सरदारों ने जो, भरा स्वीस का गल्ला ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कौन जीत अब लाये ।
चोर चोर मौसेरे भाई, किसको चोर बताये ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सपना बहुत दिखाये ।
दिन आयेंगे अच्छे कह कह, हमको तो भरमाये ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, धन का लालच छोड़ो ।
होते चार बाट चोरी धन, इससे मुख तुम मोड़ो ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, काले गोरे परखो ।
कालों को दो काला पानी, बात बना मत टरको ।।  टरकना-मौका से हटना
....................................
मौलिक अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2014 at 10:56pm

छन्न पकैया पर बढिया प्रयास हुआ है आदरणीय रमेश भाई. समसामयिक विषयों से ही छन्दों की प्रासंगिकता बनी रहेगी.

बहुत-बहुत बधाई..

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 2, 2014 at 9:49pm

आदरणीया राजेशदी, आदरणीय भंडारीजी एगीतजी वं सोमेजी आपलोगों ने मेरे इस प्रयास को सराहा रचनाकर्म सार्थक हुआ । आप सभी का आभार

Comment by somesh kumar on November 2, 2014 at 9:14am

छन्न पकैया ,बहुत सुंदर गीत प्रस्तुति ,इतने कठिन विषय पर ,बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 1, 2014 at 9:57am

गर्म लोहे पर, सही चोट. बधाई आदरणीय रमेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:33am

आदरनीय रमेश भाई , गरम विषय पर गरम गरम छन्न पकैया के लिये बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2014 at 7:47pm

वाह वाह सामयिक मुद्दे पर सही वक़्त पर छन्न पकैया पकाई हैं आपने रमेश चौहान जी आपको छंदों पर काम करते देख बहुत ख़ुशी होती है 

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