For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया 

पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया 

प्यार मुहब्बत , भाईचारे  ,मानवता की

नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया

दिन सी उजली रातें भी हो  जाये यारों

अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया

घर से ऑफिस ऑफिस से घर  फिर कुछ ग़ज़लें  

सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया 

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया 

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया 

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया 

मैंने सच्ची कुछ बातें फिर दुहराई तो 

मुझको कहती है दीवाना पगली दुनिया 

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर 

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया 

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:40am

आदरणीय विजयशंकर सर ,हार्दिक आभार |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 10:27am
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
वाह क्या बात है,
टी वी , नेट ने घर ला दी है सारी दुनिया
बीच में उनके खो गयी है अपनी दुनिया
बहुत खूब.
बहुत बहुत बधाई आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर ।
Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:26am

आदरणीय गिरिराज सर , आ. राहुल साहब ग़ज़ल पर प्यार बरसाने के लिए हृदय तल से आभारी हूं |

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया 

राहुल भाई यहाँ उसकी ,बच्चों के लिए नहीं अपितु सहधर्मिणी (जीवनसंगिनी ) के लिए आया है ,जिसकी दुनिया बहुत छोटी हैं लेकिन उसका ह्रदय विशालतम है ,मेरा सविनय अनुरोध है पुनः शेर को गुनगुनाने की कृपा करें |सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 10:33pm

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर      ---

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया

बहुत खूब अश आर हुये हैं आदरणीय खुर्शीद भाई , लाजवाब गज़ल के लिये बधाइयाँ

स्वीकार करें ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:06pm
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते
गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया
धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में
अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया

एक एक शे'र दिल को छू गया आदरणीय!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:03pm
आदरणीय लाजवाब गजल वाह वाह!

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
आदरणीय यहाँ बच्चे के साथ उसकी दुनिया की जगह शायद उनकी दुनिया लिखना ठीक हो! सन्रम!
Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:41am

आदरणीय मिथिलेश जी , गुमनाम सर ,ग़ज़ल पर प्यार बरसाने का आभार |आपका यही प्यार मेरे अशहार को माँजता है ,सँवारता है |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:40am

आदरणीय हरिप्रकाश सर , आ. सोमेश भाई , आदरणीय श्याम नारायण जी , तहेदिल से आप सभी का शुक्रगुज़ार हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार |

Comment by Shyam Narain Verma on January 15, 2015 at 9:57am

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:21pm

दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया 

पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया .............. बेहतरीन मतला 

घर से ऑफिस ऑफिस से घर  फिर कुछ ग़ज़लें  

सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया ...... क्या अशआर हुआ है लगा जैसे मैं कहना चाह रहा था लफ्ज़ आपने दे दिए.

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया ..... बेहतरीन ... उस छोटी सी मासूम दुनिया के साथ का पूरा अवसर ही नहीं मिलता ... हाय रे ये भाग दौड़ का जीवन ...

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया ......... उम्दा अशआर 

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया .... क्या खूब कहा है आपने ... बिलकुल सच्ची बात ... अब झेलो वाले हालात 

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर 

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया .......... मक्ता भी कमाल हुआ है.

आदरणीय खुर्शीद सर आप बस कमाल कर रहे है ... लग रहा है खजाने के द्वार खोल दिए है ...एक से एक कीमती रत्न बाहर आ रहे है. आपकी गज़लें पढ़कर बस झूम जाता हूँ .. हमेशा शब्द कम पडने लगते है .... बस इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं .... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
6 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
53 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह वा , आदरणीय लक्ष्मण भाई बढ़िया ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय आजी भाई उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आभार आ. गिरिराज जी "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service