घूँघट पट क्यों ओढ़ती,तुम पर मैं बलिहार
घट मेरे बसती सदा,तुम पर जान निसार ॥
गोरी तुम मैं सांमला,प्रीत घनेरी होय
राधा वर मैं बन गया,जो होए सो होय ॥
बंशी मेरी टेरती , तुम को सुबहो शाम
दर्शन श्यामा के बिना ,हमें कहाँ आराम॥
बहुत हुआ अब चुप रहो,नटवर नागर नन्द
मदन माधुरी डालते, भरते दिल आनन्द ॥
पुष्प लता है बावरी ,प्रेमातुर संसार
कंठ कंठ में रम रहा ,दामोदर करतार॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया कल्पनाजी, बधाई लें.
आदरणीय अशोक रक्ताले साहब का कहना सर्वथा उचित है. आदरणीय गोपाल नारायनजी के सुझाव पर अमल हुआ दिखता है.
शुभेच्छाएँ
आ० Ashok Kumar Raktale जी आभार /सादर
आ० Shyam Narain Verma जी आभार /सादर
आ० Hari Prakash Dubeyजी आभार /सादर
आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आप सही कह रहें है। आप के बताए अनुसार मैं दोहे ठीक कर रही हूँ । आभार /सादर
आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी. सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई ! सादर !
आ० कल्पना जी
सुन्दर भाव्-पूर्ण दोहे हैं i
गोरी तुम में सांमला --------- गोरी तुममे सांवरा
पुष्प लता हुयी बावरी में मात्रा क्रम 3 3 3 2 3 है कुल 14 मात्राए है तेरह ही चाहिए इसे करदे --पुष्प लता है बावरी
कंठ कंठ में रम रहे,दामोदर करतार की जगह ---कंठ कंठ में रम रहा , ,दामोदर करतार॥ उपयुक्त रहेगा i सादर i
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
आदरणीया कल्पना मिश्र बाजपेयी जी सादर, अच्छा प्रयास हुआ है दोहों पर तुक पर कुछ ध्यान दें होय-होय और नन्द-आनंद तुक नहीं सम हो रहे हैं. अंतिम दोहे के प्रथम चरण की मात्राएँ भी जांच लें. सादर.
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