अस्थियाँ चटकीं थीं तेरी कलाई की,
मुझसे हाँथ मिलाते हुए.
इसे समझी थी तुम, शायद,
मेरी शरारत, और,
मैं क्या समझा था, मुझे कुछ याद नही.
और अब- जबकि उसके बाद,
तुम आज तक न मिल सकी ,
सोचता हूँ - -
अस्थियों की वो चटक,
क्या एक प्रहेलिका थी
जिसका अर्थ था-
रिश्ते का 'फाइनल कट्'.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
खेद है, कि इस रचना पर आदरणीय गोपाल नारायन जी की टिप्पणी के अलावा सारी टिप्पणियाँ भ्रामक हैं. ऐसी टिप्पणियाँ किसी नवोदित को कोई रास्ता नहीं दिखातीं.
अस्थियों के चटकने में और उंगलियों के चटकने में जो स्पष्ट अंतर है, क्या उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया ?
किसी रचनाकार के प्रथम प्रयास को मिला उत्साहवर्द्धन अधिक विन्दुवत होता यदि उसे तार्किक टिप्पणियों के माध्यम से समझाया जाये.
भाई श्री सुनीलजी आप रचनारत रहें..
शुभेच्छाएँ.
सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सुनील जी. हार्दिक बधाई
आदरणीय श्रीयुत श्री सुनील जी ,सुंदर प्रस्तुति ,बधाई प्रेषित !
अस्थियों की वो चटक,
क्या एक प्रहेलिका थी
जिसका अर्थ था-
रिश्ते का 'फाइनल कट्'.
बहुत सुंदर प्रस्तुति दी है आपने आदरणीय , हार्दिक बधाई।
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