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" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

.
मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:03pm
आद0 मनीषा जी हार्दिक आभार व धन्यवाद आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:02pm
आद0 लक्ष्मण रामानुज जी हार्दिक आभार व धन्यवाद आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:01pm
आद0 विनय कुमार जी हार्दिक आभार व धन्यवाद । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:00pm
आद0 मिथिलेश वामनकर जी रचना को अपना अमूल्य समय देने हेतु हार्दिक आभार आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:58pm
हार्दिक आभार व धन्यवाद आद0 ओमप्रकाश जी । मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।सादर ।
Comment by Manisha Saxena on July 12, 2015 at 6:56pm

हर पिता की यही तमन्ना होती है की उसका बेटाउससे एक कदम आगे निकले |बहुत ही बढ़िया लघु कथा| बधाई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 12, 2015 at 12:12pm

हर माँ  बाप  यही चाहते है कि संतान के कदम आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे रहे | बहुत सुंदर बात 

Comment by विनय कुमार on July 12, 2015 at 1:01am

बहुत सुन्दर लघुकथा और बढ़िया शीर्षक । पंच लाइन भी जबरदस्त है , बधाई इस रचना के लिए आदरणीया शशि बंसल जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 12, 2015 at 12:51am

आदरणीया शशि जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 11, 2015 at 7:01pm

 आदरणीय  shashi bansal जी

जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

शानदार बात कही है . मगर यह विराम चिन्ह प्रवाह में गड़बड़ कर रहा है .

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