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गज़ल - फिल बदीह - कभी पत्थर नहीं देता ( गिरिराज भंडारी )

1222   1222   1222   1222

पियाला वो किसी को भी, कभी भर कर नहीं देता

जिसे वो नींद देता है , उसे बिस्तर नहीं देता

कभी शीशा छुपाता है , कभी पत्थर नहीं देता

बहे गुस्सा मेरा कैसे , ख़ुदा अवसर नहीं देता

तुम्हारी हर ज़रूरत पर नज़र वो खूब रखता है

तुम्हारी ख़्वाहिशों पर ध्यान वो अक्सर नहीं देता

खुशी तुम भीतरी मांगो तो वो तस्लीम करता  है

अगर बाहर के सुख मांगे तो वो भीतर नहीं देता

किया तुमने नहीं वादा  शिकायत फिर मुझे क्यूँ हो  

शिकायत उससे होती है , जो हाँ कहकर, नहीं देता

चलो तुम बांटते ही हो, अकड़ना क्या ज़रूरी है ?

यहाँ क्या बांटने वाला कभी झुक कर नहीं देता ?

रहा जब तक सुनी तुमने नहीं,  जिस शख़्स की यारो

लिपट कर आज रोना क्यूँ , कि वो उत्तर नहीं देता

***********************************************

गिरिराज भंडारी ---    संशोधित

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 11:48pm

मुझे तो मतले में उला और सानी के बीच फेर बदल उचित लग रहा है. पता नहीं क्यों, मगर ऐसा करने से मतला और सुगढ़ दिखेगा, ऐसा भान हो रहा है. इस ग़ज़ल के सभी शेर कमाल हुए हैं आदरणीय. किस पर क्या कहूँ ?
कभी शीशा छुपाता है..  इस शेर पर मैं दाद परदाद कहूँ.
तुम्हारी हर ज़रूरत पर .... . कमाल !.. इस आध्यात्मिक शेर ने मन संयत कर दिया. मोह लिया ! इसी क्रम में खुशी तुम भीतरी माँगो.. हुआ है.
किया तुमने नहीं वादा... वाह वाह वाह !
चलो तुम बाँटते ही हो.. इस शेर से नम्रता की भीनी सुगंध आ रही है
लेकिन जिस शेर ने अपने होने से चकित किया है वह है इस ग़ज़ल का आखिरी शेर ! इस शेर के होने पर दिल से बधाई आदरणीय..
मज़ा आगया..  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2015 at 10:45am

आदरणीय श्री सुनील भाई , आपको गज़ल पसन्द आयी तो ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ , आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2015 at 10:44am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by shree suneel on July 12, 2015 at 9:27am
आदरणीय गिरिराज सर जी, बधाई आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर. सारे अशआर बढि़या हुए हैं.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 9:24am

खुशी तुम भीतरी मांगो तो वो तस्लीम करता  है

अगर बाहर के सुख मांगे तो वो भीतर नहीं देता-------------------anuj bahut sundar . aapkoo badhaayee .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2015 at 12:01pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया । अब मै भी फिल बदीह मे कम गज़ल कहना या नही कहना  कर दूँगा , ज़ल्दबाज़ी में गलतियाँ बहुत कर रहा हूँ , ऐसा मेरे अपनों का कहना है , आप कम आ रहीं हैं वो ही अच्छा है । सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2015 at 10:20am

पियाला वो किसी को भी, कभी भर कर नहीं देता

जिसे वो नींद देता है , उसे बिस्तर नहीं देता-----बहुत शानदार मतला 

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी ,आप तो फिल्बदीह पर सुपरफास्ट बने हुए हैं मैं तो कभी कभी ही भाग ले पाती हूँ वक़्त की समस्या है वक़्त सूट नहीं कर रहा वर्ना बहुत अच्छा लगता है उस आयोजन में शिरकत करना आप अच्छी ग़ज़लें लिख रहे हैं बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 11:37am

आदार्णीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2015 at 11:22am

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 10:26am

आ. मिथिलेश बाई . प्रतिक्रिया के बाद , एडिट कर्ते वक़्त सूझ गया तो वो मिसरा भी सुधार दिया था , तीनो सुधार पर आपकी राय की प्रतीक्षा है ।

कृपया ध्यान दे...

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