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चाँद मेरा आया है.........

चाँद मेरा आया है....

क्यों अपने रूप पे
ऐ चाँद तूं इतराया है
आसमां के चाँद सुन
मेरे चाँद का तू साया है
अक्स पानी में तेरा तो
इक हसीँ छलावा है
अक्स नहीं हकीकत है वो
जो इन बाहों में समाया है
वो ख़्वाब है मेरी नींदों का
हकीकत में हमसाया है
अपने हाथों से ख़ुदा ने
महबूब को बनाया है
एक शबनम की तरह
वो हसीं अहसास है
देख उसके रूप ने
तेरे रूप को हराया है
किसकी ख़ातिर बेवज़ह
देख तू शरमाया है
मुझसे मिलने चांदनी में
चाँद मेरा आया है


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 370

Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 14, 2015 at 7:42pm

आदरणीय   narendrasinh chauhan जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by narendrasinh chauhan on July 13, 2015 at 1:49pm

खूब सुन्दर अभिव्यक्ति,,

Comment by Sushil Sarna on July 13, 2015 at 12:39pm

आदरणीय  PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2015 at 4:11am

खूब सूरत  अभिव्यक्ति , सादर बधाई 

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