" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।
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मौलिक व अप्रकाशित ।
Comment
हर पिता की यही तमन्ना होती है की उसका बेटाउससे एक कदम आगे निकले |बहुत ही बढ़िया लघु कथा| बधाई |
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हर माँ बाप यही चाहते है कि संतान के कदम आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे रहे | बहुत सुंदर बात
बहुत सुन्दर लघुकथा और बढ़िया शीर्षक । पंच लाइन भी जबरदस्त है , बधाई इस रचना के लिए आदरणीया शशि बंसल जी..
आदरणीया शशि जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई
आदरणीय shashi bansal जी
जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।
शानदार बात कही है . मगर यह विराम चिन्ह प्रवाह में गड़बड़ कर रहा है .
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