For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अँधेरे का राही (लघुकथा)

पहले तो रविन्द्र  ने चाहा,कि न कर दूँ ,क्यूंकि दस बज चुके थे,  और सर्दी भी बढ़ रही थी, पर एक साथ पाँच सवारियां देख कर उस ने फेरा लगाने का मन बना लिया । सुबह से कोई अच्छा फेरा भी तो नहीं लगा था । वह सवारियों को थ्रिविलर में बिठा बस स्टैंड से शहर के सुनसान एरिया की तरफ निकल पड़ा जो कभी रौनक  भरा होता था, पर जब का हस्पताल को  यहाँ से कहीं और शिफ्ट किया तब  ज्यादातर दुकानदारों ने  दुकानों को पक्के तौर पर ताले लगा दिए,और बाकी अब तक बंद हो चुकी थी ।  

हिचकोले खाता थ्रिविलर चारों तरफ फैली  सुनसान सड़क से गुजर रहा था, दूर तक कोई रौशनी नजर न आने के कारण सवारियों घबरा रही थी,जहाँ एक तो चौर उच्चके का डर वहीं इससे ज्यादा एक्सीडेंट  होने का डर सवारियों को  सता रहा था, और वो मन ही मन  उस पे गुस्सा निकाल रहे  थे  ।

जब एक सवारी ने पूछ ही लिया ,”इस की  बतियाँ क्यूँ नही जगाई” । तो उसने धीरे से कहा, “हाँ, खराब हो गई है”, “मगर इसे ठीक तो कराना था”, एक बजुर्ग आवाज़ ने कहा

“ऐसा कर आप खुद को और सवारियों  को भी खतरे में पाते हो” । पर रविन्द्र उनकी बातों की तरफ  बिना ध्यान दिए थ्रिविलर चलाए जा रहा था, मगर सवारिया लगातार कुछ न कुछ कहे जा रही थी । आखिर उस ने थ्रिविलर रोक दिया, “आप तो ऐसे कह रहें जैसे मेरे घर बूढ़े  माँ बाप , बीवी ,बच्चे नहीं , मुझे भी.... पर कहाँ से आठ सौ रुपए का प्रबंध करूं, इसे ठीक कराने के लिए” ।

शहर में पहले ही इतने थ्रिविलर, मिन्नी बस्सें तो थी, अब सरकार ने बस चला दी, “अगर आप को खतरा है, तो उतर जाएँ, मैं नहीं जाता ।  मुझे नही चाहिए किराया भी” । थ्रिविलर में चुप्पी छा गई, फिर एक सवारी ने हमदर्दी जताते हुए कहा, “चलो, कोई बात नहीं धीरे धीरे ध्यान से चलाना”, तब रविन्द्र ने सीट के नीचे से रस्सी निकाल कर फिर थ्रिविलर स्टार्ट किया ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Archana Tripathi on August 7, 2015 at 4:54pm
दोनों के भय एक से परन्तु जताने के अलग अलग।सुंदर प्रस्तुति हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
Comment by Omprakash Kshatriya on August 7, 2015 at 7:55am

आदरणीय मोहन बेगोवाल  जी , आप ने बातों ही बातों में अपने भावों को बखूबी उघाड़ कर रख दिया. इस से सवारी और रिक्शेवाले दोनों की मनोव्यथा का शानदार चित्रण कर दिया. बहुत ही बढ़िया लघुकथा बनी है आप की . बधाई आप को .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:21pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल सर बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 11:10am

सुन्दर है !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service