For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाव ( लघुकथा ) // शशि बंसल

" सुनिए , परसों से श्राद्ध शुरू हो रहे हैं । पड़ोस वाली चाची जी कह रही थीं , बहू घर में सुख शांति चाहिए हो तो , सोलह दिन पितरों की खूब सेवा कर । अब मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि जो हैं ही नहीं , उनकी सेवा कैसी ?

" शरीर तो ईश्वर का भी नहीं है । फिर कौन सा तुम्हे हाथ पाँव दबाना है या दवा - दारू करनी है । परम्परा अनुसार कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाना , हाथ जोड़ना और खाना - खिलाना ,बहुत हुआ तो चार रिश्तेदार भी बुला भेजना । इस बहाने थोड़ी जय - जयकार भी हो जायेगी तुम्हारी । बस हो गया श्राद्ध ।वो तो आके खाने से रहे अब ।"

" जी , सही कह रहे हैं आप ।मैं समझ गई हूँ कि उन्हें हमारी सेवा नहीं सिर्फ भाव चाहिए ।"

" पर बहुत देर से ।" ' सेवा न सही अगर भाव की कीमत भी समझ लेती न अंजू , तो आज यूँ सुख - शांति की चिंता न करनी पड़ती ।' वह मन ही मन बुदबुदाया ।

मौलिक व् अप्रकाशित ।

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:12pm
" भाव " पर भाव की बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हुई है आदरणीया शशि जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on September 24, 2015 at 1:01pm

हार्दिक बधाई शशि जी, इस बेहतरीन लघुकथा के लिये!बहुत करारा प्रहार किया है आपने रूढिवादिता पर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 12:48pm

आदरणीया शशि जी हमेशा की तरह एक बेहतरीन प्रस्तुति. इस सफल लघुकथा पर हार्दिक अबधाई 

Comment by pratibha pande on September 24, 2015 at 11:12am

पितृ पक्ष पर इस  भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए   बधाई आपको ,आदरणीय शशि जी ,

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2015 at 4:01am
बहुत सुंदर कटाक्ष/व्यंग्य आदरणीया Shashi Bansal जी। अंतिम बुददबुदाने वाले शब्दों से कथा अपने उद्देश्य को सफलतापूर्वक संपन्न कर रही है ।बहुत बहुत बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
33 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service