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पलट गई बाज़ी (लघुकथा)

इलेक्शन के ऐलान के बाद राजनीती का बाज़ार गर्म होने लगा,गाँव में हर पार्टी अपने अपने पर तोलने लगी ।

सभी तरफ  वोटर को लुभाने व उनका धर्म ज़ात व कीमत लगाने की तैयारी चल रही थी।

उस दिन मास्टर बजार में खड़ा कह रहा था “अब तो पहले जैसी राजनीती  नहीं रही” ।

“अब तो साये की तरह साथ रहने वाले पार्टी वर्करों पर भी कोई यकीन नहीं रहा”

पास खड़े आदमी ने कहा “ऐसा क्यूँ”, तुम देखते नहीं रेलियों में भीड़ जितनी  होती है, भीड़ को वोट में तब्दील करना एक टेढ़ी खीर बन गया है” । महिंद्र ने कहा ।

“अब तो जीत होगी या हार, ये पता लगाना भी बहुत मुश्कल हो गया है” पास खड़े महिंद्र ने मास्टर को कहा।   

महिंद्र को याद है,जब शुरू शुरू में इलेक्शन होती थी तो लोग हमें वैसे ही वोट डाल देते थे ।

एक बार तो रातो रात सब कुछ बदल गया, जब वोटें तो दुसरे ग्रुप ने बनाई, और निकली हमारे डब्बे में ।

“मगर अब तो वो दबा व प्यार भी काम नहीं आता” मास्टर जी ।

 “अब तो मुंह मांगे दाम देने पड़ते हैं” महिंद्र ने बात को आगे बड़ाते हुए कहा  ।

“फिर भी वोट किस तरफ डाल दें,कोई कुछ नहीं कहा जा सकता” मास्टर ने कहा । 

“कहते हैं अब लोगों को खास करके बस्ती वालों को  वोट की कीमत समझ आने लगी है” ।  

इसी को ध्यान में रखते हुए महिंद्र ने एक दिन पहले सभी बस्ती वालों  के लिए हवेली में खास पार्टी की तैयारी की जिमेवारी  उनके प्रधान को दी ,और साथ ही बस्ती  वालों के सभी वोटरों के इलेक्शन कार्ड पर नज़र रखने के लिए भी कह दिया ।

आज बहुत ही शांति से  इलेक्शन हुए,शाम को जब रिजल्ट आया तो सब हैरान हुए,महिंद्र की हवेली में सुनसान पसर गई, किसी को यकीन नहीं आया कि इस घर को भी कभी हार हो  सकती है, लोग पार्टी से ज्यादा, इनके बजुर्गो का ख्याल रख कर वोट देते थे ।

मगर इस बार तो, महिंद्र के सामने से प्रधान ने गुजरते हुए  कहा, सरदार जी, “इस बार तो हर तरफ बाज़ी पलट  गई है “और  नजरें चुराता हुआ अपने घर की तरफ चल पड़ा । महिंद्र देर तक वहाँ खड़ा कभी प्रधान और कभी बस्ती के बारे सोचता रहा।   

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:31pm

अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय मोहन जी।

Comment by Nita Kasar on December 10, 2015 at 8:25pm
बाज़ी पलट गई है बाज़ी पलटने में वक़्त कहाँ लगता है चुनावी माहौल का एक रूप यह भी बधाई आद०मोहन बेगोवाल जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 9, 2015 at 9:32pm
सुंदर रचना के लिए बधाई आदरणीय मोहन सर जी।
Comment by Rahila on December 9, 2015 at 9:27pm
बहुत ही जीवंत चित्रण गांव में होने वाले चुनावों का । आदरणीय मोहन सर जी! बेहतरीन रचना । सादर नमन ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 3:17pm
कुछ समय से परिलक्षित हो रहे चुनावी/राजनीति/मतदान परिणामों के मद्देनज़र समग्र रूप से बढ़िया चित्रण किया है कथोपकथन के साथ। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय मोहन बेगोवाल जी ।

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