“बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।
“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”
“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।
“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।
” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”
बात को आगे बड़ाते हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है, सीरत तो अभी वही है ।
"आप ने ये कैसे कह दिया ?"सरबजीत ने कहा ।
आप ने तो सोचा होगा कि इन का क्या, ये तो काम करेंगे ही चाहे इनको कुछ भी कहें । मगर आप ने तो हद कर दी ,मेरे साथ आई मेरी लडकी का भी ध्यान नहीं रखा, क्या क्या नहीं बोला तूने " कांता ने कहा ।
"मैने क्या कह दिया ? सरबजीत ने कहा ।
“हम ने भी तो घाट घाट का पानी पिया है, हम को पता चल जाता है कि कोई क्या बोल रहा है” बीबी जी “ये कैसे तुम ने कह दिया कि हम नीच लोग सदा झूठ बोलते हैं और काम नहीं करते ” ।
“पता नहीं क्यूँ, सरबजीत को आज कांता का ऐसा कहना उस के अंदर चीस सी पैदा कर गया ,उसे लगा कि वह कांता से ऑंखें भी नही मिला पा रही, कई लोगों के साथ जिंदगी में तकरार हुई, मगर ऐसा उसके साथ पहली बार हुआ ।
“हमें नहीं चाहिए दस दिन की पगार भी” ।
ये कह कर कांता कोठी से बाहर आ गई । सरबजीत को लगा, कांता की जीत के सामने ये कैसी हार हुई ? जिस में वह अपनी बात भी नहीं रख पाई, और तब वह अपनी हार की जड़े अतीत में खोजने लगी ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय मोहन भाई , आपकी कथा पढे लिखों को सोचने पर मजबूर करती है , वास्तव मे पढे लिखे का क्या अर्थ होता है ? आपको हार्दिक बधाई कथा के लिये ।
कान्ता का यु ही काम छोड़ने की बात करना सही नहीं लगा कथा में , आपको कोई एक घटनाचक्र यहां रोपित करने की जरुरत थी जिससे की कांता कि बातों को आधार मिलता । यहां कथा पढ़ते हुए कुछ छूटने का आभास सा हो रहा है।कथानक बहुत ही सुन्दर लिया है आपने यहां , काम वाली बाइयों को कमतर आंकने की भूल अक्सर हम सब कर लेते है जबकि बौद्धिक स्तर में वो हमारे मुकाबले में कई बार बहुत आगे होती है। मानवीय संवेदनाओं को आधार बना कर बहुत खूबलेखन हुआ है यहां आपका आदरणीय मोहन जी। सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी!आप की लघुकथा बहुत कुछ सोचने पर मज़बूर कर रही है!हमारा अपने कर्मचारियों के प्रति क्या नज़रिया होना चाहिये!अच्छा संदेश देती बेहतरीन रचना!पुनः बधाई!
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