For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 “बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में  काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।

“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”

“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत  ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।

“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।

” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”

बात को आगे बड़ाते  हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है, सीरत तो अभी वही है ।

"आप ने ये कैसे कह दिया ?"सरबजीत ने कहा ।

आप ने तो सोचा होगा कि इन का क्या, ये तो काम करेंगे ही चाहे इनको कुछ भी कहें । मगर आप ने तो  हद कर दी ,मेरे साथ आई मेरी लडकी का भी ध्यान नहीं रखा, क्या क्या नहीं बोला तूने "  कांता ने कहा । 

"मैने क्या कह दिया ? सरबजीत  ने कहा ।

“हम ने भी तो घाट घाट का पानी पिया है, हम को पता चल जाता है कि कोई क्या बोल रहा है” बीबी जी “ये कैसे तुम ने कह दिया कि हम नीच लोग सदा  झूठ बोलते हैं  और काम नहीं करते ”  ।

 “पता नहीं क्यूँ, सरबजीत को आज कांता का ऐसा कहना उस के अंदर चीस सी पैदा कर गया ,उसे लगा कि वह कांता से ऑंखें भी नही मिला पा रही, कई लोगों के साथ जिंदगी में तकरार हुई, मगर ऐसा उसके साथ पहली बार हुआ ।

 “हमें नहीं चाहिए दस दिन की पगार  भी” ।

ये कह कर कांता कोठी से बाहर आ गई । सरबजीत को लगा, कांता की जीत के सामने ये कैसी हार हुई ? जिस में वह अपनी बात भी नहीं रख पाई, और तब वह अपनी हार की जड़े अतीत में खोजने लगी ।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:05pm

आदरणीय मोहन भाई , आपकी कथा पढे लिखों को सोचने पर मजबूर करती है , वास्तव मे पढे लिखे का क्या अर्थ होता है ? आपको हार्दिक बधाई कथा के लिये ।

Comment by Nita Kasar on December 5, 2015 at 1:12pm
उनके बलबूते हमारे घर की व्यवस्था कुशलता से चलती है उनका ख़्याल हमें रखना पड़ता है हमारा व्यवहार भी उन्है टिके रहने के लिये प्रेरित करता है बधाई आपको आद०मोहन बेगोवाल जी ।
Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 6:48pm

कान्ता  का यु ही काम छोड़ने की बात करना सही नहीं लगा कथा में , आपको कोई एक घटनाचक्र  यहां रोपित करने की जरुरत थी जिससे की कांता कि बातों को  आधार मिलता ।  यहां कथा पढ़ते हुए कुछ छूटने का आभास सा हो रहा है।कथानक बहुत ही सुन्दर लिया है आपने यहां , काम वाली बाइयों को कमतर आंकने की भूल अक्सर हम सब कर लेते है जबकि बौद्धिक स्तर में वो हमारे मुकाबले में कई बार बहुत आगे होती है।  मानवीय संवेदनाओं को आधार बना कर बहुत खूबलेखन हुआ है यहां आपका आदरणीय मोहन जी।    सादर।  

Comment by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 12:32pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी!आप की लघुकथा बहुत कुछ सोचने पर मज़बूर कर रही है!हमारा अपने कर्मचारियों के प्रति क्या नज़रिया होना चाहिये!अच्छा संदेश देती बेहतरीन रचना!पुनः बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service