For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूप सर पर चढ़ी है सावन में
तिश्नगी हर घड़ी है सावन में

आँखें भीगीं हैं और लब सूखे
आंसुओं की झड़ी है सावन में

जेठ की सोने-चाँदी सी धरती,
हीरे-मोती जड़ी है सावन में

तुझको देखूँ कि इन बहारों को
सामने तू खड़ी है सावन में

बादलों! अब न भाग पाओगे
हाँ, सुरक्षा कड़ी है सावन में

सूख जाएं न फिर ये अश्क़ मेरे
इसलिए हड़बड़ी है सावन में

दो किनारों को फिर मिलाने "जय",
इक नदी चल पड़ी है सावन में

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 9:30am

आदरणीय जयनित भाई , खूबसूरत श्रावणी गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:29am

आ0 भाई जयनित जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 28, 2016 at 9:22pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी, ग़ज़ल की सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ आपका।
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 28, 2016 at 9:21pm
आदरणीय अशोक जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई इसका अर्थ यह हुआ कि मेरा प्रयास सफल हुआ है। रचना पर उपस्थित होकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 28, 2016 at 9:19pm
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी प्रतिक्रिया से आत्मिक ख़ुशी की अनुभूति हो रही है। बहुत बहुत धन्यवाद आपको। सादर।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 28, 2016 at 9:17pm
आदरणीया आभा जी, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ।
Comment by Ravi Shukla on July 28, 2016 at 3:59pm

आदरणीय जयनित कुमार  जी  बहुत अच्‍छी  गजल कही है. मुबराक बाद हाजिर है 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 3:37pm

आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है. मतले से मक्ते तक सभी अशआर मनभावन हैं और इस एक शेर  का तो कहना ही क्या.

बादलों! अब न भाग पाओगे
हाँ, सुरक्षा कड़ी है सावन में

बहुत-बहुत बधाई.सादर.

Comment by Samar kabeer on July 28, 2016 at 3:03pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत सुंदर और मनभावन ग़ज़ल हुई है सावन में,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Abha saxena Doonwi on July 28, 2016 at 8:18am

वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने बधाई :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service