For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक सूनी डगर रहा हूँ मैं (ग़ज़ल)

2122 1212 22

टूटकर अब बिखर रहा हूँ मैं।
खुद को आईना कर रहा हूँ मैं।

मुझको दुनिया की है खबर लेकिन
खुद से ही बेखबर रहा हूँ मैं।

चोट खा-खा के, अश्क़ पी-पीकर,
आजकल पेट भर रहा हूँ मैं।

फिर भँवर पार कर के आया हूँ,
फिर किनारे पे डर रहा हूँ मैं।

उम्र-भर ढूँढता रहा खुद को,
उम्र-भर दर-ब-दर रहा हूँ मैं।

पास मंज़िल के आ गया, फिर क्यों,
हर कदम पर ठहर रहा हूँ मैं?

क्या गुज़रता भला कोई उसपर,
एक सूनी डगर रहा हूँ मैं।

एक दरिया के दो किनारे हम,
वो उधर,तो इधर रहा हूँ मैं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 7:29pm

फिर भँवर पार कर के आया हूँ,
फिर किनारे पे डर रहा हूँ मैं।

जब भँवर पार कर के आया हूँ,
क्यों किनारे पे डर रहा हूँ मैं ? 

ऐब को जानना बहुत ही ज़रूरी है. जब अभ्यास से सारा कुछ रच-बस जाय, तब सोचना उचित होता है कि कौन सा ऐब कितना प्रासंगिक है. लोग इस विन्दु को कायदे से नहीं समझते. और इंगित किये जाने पर चीख-पुकार मचाने लगते हैं. खैर..  

बाकी, सभी गुनीजनों ने कह दिया है. ध्यान दीजियेगा.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:20pm

आदरणीय जयनित भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , और आ. समर भाई की सलाह भी उचित है , इस गज़ल के लिये ऐबे तनाफुर को जाने दें क्यों कि पूरी गज़ल को ही सुधारना पड जायेगा , आगे से खयाल रखियेगा । ये मेरी सलाह है , पर सुधारना अगर सम्भव है आपके लिये तो ज़रूर सुधारना चाहिये ।  आपको बहुत बधाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:16pm

आ० भाई जयनित जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2016 at 4:41pm

भाई जय्नित जी बेहतरीन शेरो की इस शानदार ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 3:33pm

बहुत सुंदर भाई जयनित जी बहुत बहुत बधाई, समर साहब के सुझाव के बाद शे र और निखर गया है

Comment by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 3:16pm
आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, इससे बढ़कर ख़ुशी की बात और क्या होगी एक रचनाकार के लिए।

हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 3:13pm
आदरणीय समर कबीर जी, मेरी रचना पर उपस्थित होकर मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा की तरह इस बार भी आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
हालाँकि इस ऐब के बारे में मैंने पढ़ा था, लेकिन ग़ज़ल कहते समय बिलकुल भी ध्यान नहीं रहा कि मैं एक दोषयुक्त काफिये और रदीफ़ पर ग़ज़ल कह रहा हूँ।
अब समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?

हाँ! चौथे शेर पर आपके द्वारा दिए गए सुझाव से बहुत ख़ुशी हुई। मैं आप वरिष्ठ एवं गुणी जनों ये इसी प्रकार के मार्गदर्शन का इंतज़ार रहता है।
पुनः आपके प्रति बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ। सादर!
Comment by Ravi Shukla on August 1, 2016 at 3:03pm

आदरणीय जयनित जी बधाई गजल के लियेे । बढि़या कलाम है । 

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 2:34pm

टूटकर अब बिखर रहा हूँ मैं।
खुद को आईना कर रहा हूँ मैं।

मुझको दुनिया की है खबर लेकिन
खुद से ही बेखबर रहा हूँ मैं।

बहुत खूब आदरणीय जयनित कुमार जी ... खूबसूरत अहसासों से सजे अशआर दिल को भा गए ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on August 1, 2016 at 1:38pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
कुछ सुझाव हैं अगर आप मुनासिब समझें तो,हालांकि आजकल ऐब-ए-नाफुर पर कोई ध्यान नहीं देता,लेकिन ऐब फिर भी ऐब होता है, आपकी पूरी ग़ज़ल के साथ ये ऐब चल रहा है"डर रहा"विचार कीजियेगा ।
चौथा शैर अगर इस तरह करें तो शैर में रवानी आ जायेगी:-
"इक भँवर पार कर के आया हूँ
पर किनारे से डर रहा हूँ में"
बाक़ी शुभ शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
12 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service