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ग़ज़ल - क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये ( गिरिराज भंडारी )

क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये

22  22  22  22  22  2  --  बहरे मीर

तुमने भी अपने हिस्से के पल पाये

मिली भाव की आँच, कभी क्या गल पाये

 

शब्दों का हर बाण चलाया तुमने पर

क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये

 

तेल डाल कर दिया कर जला छोड़ दिया

वो जानें, वो जल पाये ना जल पाये  

 

समय इशारा किया हमेशा खतरों का

समझ इशारा कितने यहाँ सँभल पाये ?

 

खूब कोशिशें हुईं कि हम बदलें लेकिन

वर्तमान के साँचे में ना ढल पाये

 

बुद्धि कह रही है हाथों को ख़ंज़र दो

पर भावों को अंदर के कोमल पाये

 

कई मुखौटे हर चेहरे पे लगे दिखे

हर ज़हनों में जीते सौ सौ तल पाये

 

यूँ भविष्य का वादा कर देते हैं  हम

मुठ्ठी में ज्यूँ आने वाला कल पाये  

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:46am
वाह । शानदार रचना हुई है आदरणीय । बधाई स्वीकारें ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2016 at 3:33pm

आदरणीय बृजेश भाई . हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 15, 2016 at 4:35pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर सीख प्रदान करती हुई रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 15, 2016 at 1:45pm

आदरणीय आशुतोष भाई , वन्दे मातरम !!  गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 15, 2016 at 1:44pm

आदरणीय सुशील भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 15, 2016 at 1:43pm

आदरनीय सुरेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 15, 2016 at 11:38am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब सर्वप्रथम मैं आपके स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करते हुए इस बहरे मीर की अगले कड़ी के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित कर रहा हूँ ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2016 at 8:56pm

तुमने भी अपने हिस्से के पल पाये
मिली भाव की आँच, कभी क्या गल पाये

शब्दों का हर बाण चलाया तुमने पर
क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब वाह ... कितने तीक्ष्ण भाव का समावेश किया है आपने अपनी इस ग़ज़ल में ... नमन आपकी लेखनी को। .. हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 14, 2016 at 6:18pm
श्रद्धेय गिरिराज भंडारी जी सादर प्रणाम । दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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