For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 पास ही  की झुग्गी के  बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और दौड़ पडे .
"अरे मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." लूली ने जोर देकर अपने भाई से कहा और लंगडाते हुए वह भी दौडने का प्रयास करने लगी.
जिसके हाथ में जो आया लेकर भागने लगे थे की लूली के हाथ में आई रोटी का टुकड़ा एक कुत्ते के पिल्ले ने छिनकर दौड लगा दी.
खचाक!!! की आवाज़ के साथ गाड़ी रुकी.
दो मिनट मे ही कुई!कुई!कीआवाज बंद हो गई .
 डीजे का शोर, उस पर नाचती नौजवान पीढी. लक-दक कपड़ों मे सजे एक दूसरे से औपचारिकता निभाते  मेहमान . दूल्हा-दुल्हन की आठ इंची मुस्कान आशीर्वाद लेने मे मस्त. पांडाल की  गहमा-गहमी में किसी का ध्यान इस ओर नही था.

लूली मुन्ना का हाथ थामे लथपथ पडे पिल्ले के मुँह मे दबे रोटी के टुकड़े को निहार रही थी.

मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 26, 2016 at 10:11am

  झंक्झोरने वाली कथा हैI दो वर्गों के बीच की ये  खाई,  रोज़  बढ़ते जा रहे जुर्मों  की एक बड़ी  वजह  है I मेरी बधाई स्वीकार करें आप इस रचना पर आदरणीया नयना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:11am

लघु कथा पढ़ते ही जिस बात ने मुझे रोका वो आद० समर भाई जी पहले ही कह चुके हैं की लूली हाथ से अपाहिज को कहते हैं इस कमी को आप निःसंदेह दूर कर लेंगी .लघु कथा में अमीरी गरीबी एवं भूख का वास्तविक चित्रण हुआ है दिल से बधाई आपको आद० नयना जी |

Comment by Manan Kumar singh on August 25, 2016 at 9:07am
कटु सत्य चित्रित हुआ है,बधाई आदरणीया।टंकणजनित भाषागत त्रुटियों का निराकरण अपेक्षित है,सादर।
Comment by Rahila on August 24, 2016 at 8:49pm
बहुत मार्मिक रचना आदरणीया दीदी!बहुत बधाई आपको ।सादर
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 24, 2016 at 6:59pm
आ. समर कबीर जी आदाब --"लूली"हाथ-पैर दोनो से निशक्त है इसीलिए उसका नाम लूली पड गया था। शायद संप्रेषण मे यह बात उभर कर शहीं आ पाई। आपने रचना को पढ़कर अपना मत रखा इस हेतु आभार
Comment by Samar kabeer on August 24, 2016 at 3:00pm
मोहतरमा नयना जी आदाब,लघुकथा अच्छी है,बधाई स्वीकार करें ।
"लूली ने ज़ोर देकर अपने भाई से कहा और लंगड़ाते हुए वह भी दौड़ने का प्रयास करने लगी"
लूली तो उसे कहते हैं जो एक हाथ से अपाहिज हो,फिर वह लंगड़ाती हुई क्यों ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service