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गजल(जैसे तैसे आगे आता))

     #गजल#

       ***

 22 22 22 22

जैसे-तैसे आगे आता

मैं भी जनसेवक हो जाता!1

 

सेवा के आयाम बहुत हैं

अपनी सब करतूत गिनाता!2

 

नकली आँसू के छींटे दे

मन के माफिक मेवे खाता!3

 

पाँच बरस मुझको मिल जाते

चार पहर रोते फिर दाता!4

 

भाषा को हथियार बनाकर

जोर लगा मैं शोर मचाता!5

 

जात-धरम के पेड़ फफनते

थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6

 

मेरी खातिर भींग कहें सब-

'ले लो मेरा,ले लो छाता!'7

 

चाहे जितने आँसू देकर

उम्मीद- घटा बन मैं छाता!8

 

सेंध तिजोरी में लग जाती

टेर मुलाजिम शीश झुकाता!9

मौलिक व अप्रकाशित@मनन

 

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on March 3, 2017 at 10:03pm
आपका आभारी हूँ आदरणीय जवाहर जी।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 3, 2017 at 8:54pm

जात-धरम के पेड़ फफनते

थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6

 

मेरी खातिर भींग कहें सब-

'ले लो मेरा,ले लो छाता!'7

बहुत ही सुन्दर और सत्य को उजागर करती हुई रचना!

Comment by Manan Kumar singh on March 2, 2017 at 10:08am
आभार आरिफ भाई
Comment by Mohammed Arif on March 1, 2017 at 8:14pm
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब, शानदार बह्र-ए-मीर में लिखी गई ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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