For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क की दास्ताँ यह छुपानी नही (गजल)

बहर:- 212-212-212-212

फर्ज के वास्ते बद-जुबानी नही ।
फर्ज वो राह है जिसके मानी नही ।।

हिज्र से बढ़के कोई कहानी नही।।
इश्क की दास्ताँ यह,छुपानी नही ।।

रूठ कर आप ने ही तो रुसवा किया।
आप ने ही मेरी बात मानी नही।।

शोर-ओ- गुल मे बसर हो गई जिंदगी ।
यूं लगे हम ने पाई जवानी नही।।

उम्र का हर तजुर्बा गरल दे रहा ।
इतना जहरीला अश्को का पानी नही ।।

जानलेवा रहा जिंदगी का सफ़र ।
हर कदम मौत है जिंदगानी नही।।

एक दिन कान में छुपके से बोला कोई ।
तुमभी ढलने लगे अब जवानी नही ।।

एक तो मै कभी कुछ भी लिखता नही ।
गर उठा लू कलम कोई सानी नही ।।


मौलिक/ अप्रकाशित
अमोद बिन्दौरी ..

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 25, 2017 at 7:18pm
आ गिरिराज दादा मैंने म'आनी को ममानी लिख दिया था यदि गलत है तो
आप का दिया गया सुझाव अच्छा लगा
सादर नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 25, 2017 at 7:15pm
आ समर सर तकाबुल ए रदीफ़ सर यहाँ तक पहुचा नही हूँ अभी सिर्फ शब्द बहर में रख अपनी बात कह्न की कक्षा में हूँ आगे प्रयाश कर रहा हैं मुझे मार्गदर्शन देते रहें

सादर नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 25, 2017 at 7:12pm
आप सभी दोस्तों का आभार नमन
आ समर सर प्रणाम
आप सभी के उतसाह वर्धन और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार
Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:11pm
आदरणीय अमोद जी, इस प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिए और गुणीजनों की बातों पर ध्यान दीजिए। शुभक्मनाएँ। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 8:18pm

आदरणीय आमोद भाई , ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है , गुणि जन की बातों का ख्याल कीजिये ।

मतला अगर ऐसे कह लें तो राबता दोनो मिसरों  हो जाय --

फर्ज के वास्ते बद-जुबानी नहीं ।
फर्ज की राह का कोई सानी नहीं

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:19am

नही को नहीं कीजिये और समर सर की बातों को आत्मसात कीजिये 
आप के उज्जवल भविष्य की कामना सहित ....
सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 6:39am
अच्छा प्रयास है भाई आमोद जी बधाई स्वीकारें। समर भाई साहब के सुझावों पर ध्यान दीजियेगा।सादर
Comment by नाथ सोनांचली on March 7, 2017 at 3:19pm
आद0 आमोद श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। जैसा कि आपने लिखा है कि आप अभ ग़ज़ल लिखने की कला सीख रहे हैं उस लिहाज से आपकी अच्छी पकड़ हैं। शेष जैसा उस्ताद समर कबीर साहब सुझाये है, वैसा लिखिए, और ग़ज़ल पर समय दीजिये, मेरी आपको अनन्त शुभकामनाये। मैं भी आपकी श्रेणी में ही हूँ।
Comment by Samar kabeer on March 7, 2017 at 3:08pm
जनाब अमोद बिन्दोरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें,लेकिन ग़ज़ल अभी और समय चाहती है ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात सानी मिसरे में ऐब-तनाफ़ुर भी है'राह है'तीसरी बात सानी मिसरे में आप फ़र्ज़ की राह को बेमानी बता रहे हैं,ये सही नहीं ।
'उम्र का हर तजुर्बा गरल दे रहा'
इस मिसरे में सही शब्द है "तज्रिबा"
'एक दिन कान में छुपके से बोला कोई'
ये मिसरा बेबह्र है ।
आख़री शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष है,देखियेगा ।
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 7, 2017 at 12:14pm
आ मोहम्मद आरिफ साहब जी उत्साह वर्धन के लिए आप का बहुत बहुत आभार । सर अभी गजल लिखना सीख रहे हैं और हिंदी की उर्दू की भी कोई विशेस जानकारी नही है हमें तो इस गलती की क्षमा प्रार्थी है ।कोशिस कर रहे हैं की सही लिख्खे ........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
11 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
16 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
20 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service