For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चला गया ...

हवा 
शयन कक्ष के परदों से
खेलती रही

टेबल पर पड़ी मैग्ज़ीन के पन्ने
वायु वेग से
बार बार
फड़फड़ाते रहे

तन्हा से पड़े
काफी के मग
खाली होते हुए भी
अपने में
बहुत कुछ समेटे थे

समेटे थे
अपने अंदर
अकेलेपन से बातें करते
वो क्षण
जो काफी के मग को
अधरों से लगाए
कनखियों से निहारते हुए 
आँखों ने आँखों में
बिताये थे

समेटे थे
अपने अंदर
अव्यक्त
तृषित अधरों के
अंतर्द्वंद के
स्पंदन को
हृदय की कंदराओं में
जीते वो क्षण
जो
किसी की अनुपस्थिति को
जीवंत किये हुए थे

समेटे थे
अपने अंदर
अव्यक्त
कसमसाती
प्रेमानुभूति के वो क्षण
जो स्वप्नभाल पर
स्मृति चन्दन से बने 
अनुपम भित्ति चित्र को
शयन कक्ष के
हिलते हुए परदों के पीछे छोड़
कोई
फिर आने का
वादा कर
चला गया

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 677

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:32pm

आदरणीय तेज वीर सिंह जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी सहमति से पोषित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:31pm

आदरणीय सतविंदर जी प्रस्तुति को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि टंकण दोष के कारण है। इसे भी मैं अभी संशोधित कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:31pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपने प्रस्तुति को समय दिया इसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। आपके मार्गदर्शन से मैं लाभान्वित हुआ। आपके सुझावानुसार मैंने रचना में संशोधन कर दिया है। आशा है भविष्य में भी ऐसा ही मार्गदर्शन मिलता रहेगा।  आपके अमूल्य सुझाव एवम मार्गदर्शन का हार्दिक आभार। 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 17, 2017 at 10:38am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 16, 2017 at 10:47pm
आदरणीय सुशिल सरना जी सादर नमन।जीवंत बिम्बों के साथ अद्भुत कविता लिखी है आपने,हार्दिक बधाई स्वीकारें।पवन बेशतर पुल्लिंग् शब्द ही है,यही हमारा भी अनुभव हहै।बाकी इस शब्द पर और चर्चा की प्रतीक्षा रहेगी।/निहारते हुई/ में भी लिंग सम्बन्धी दोष प्रतीत हो रहा है।सादर
Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 10:37pm
"पवन चलती रही" का प्रयोग अगर साहित्य में किसी ने किया हो,या इस शब्द को स्त्रीलिंग में बांधा हो तो कृपा कर मुझे भी बताएं ?
साहित्य में जहाँ जहाँ इस शब्द का प्रयोग हुआ है वो बीच का हुआ है,यानी वहाँ स्त्रीलिंग या पुल्लिंग पता नहीं चलता,मिसाल के तौर पर:-
"ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े"
या
"उड़के पवन के संग चलूंगी"
या
"सपन चला आये कोई चोरी चोरी
मस्त पवन गाए लोरी"
जब शब्दकोष में "पवन"शब्द को पुल्लिंग बताया गया है तो हमें उसका पालन करना चाहिये, आपकी कविता इस शब्द की मुहताज भी नहीं,आप 'पवन'की जगह 'हवा'क्यों नहीं कर लेते,ये प्रश्न ही ख़त्म हो जायेगा,लेकिन इस कविता में 'पवन'कहना ही ज़रूरी है तो आप स्वतंत्र हैं ही ।
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 4:26pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन के भावों को अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। आपका कथन सही है लेकिन पवन चल रहा था तो नहीं कहेंगे चल रही ही कहेंगे , .... मेरे विचार से ये प्रयोग सही है ... शेष वरिष्ठ जन इस बारे में अधिक बता सकते हैं।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 3:58pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह सुंदर और जज़्बाती कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'पवन
शयन कक्ष के परदों से
खेलती रही'
आपकी जानकारी के लिये बतादूँ कि "पवन"शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:16pm

आदरणीय  Mohammed Arif      साहिब प्रस्तुति में  निहित भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on March 16, 2017 at 8:19am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
1 hour ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
1 hour ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service