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पावन हो …….


सुना था
मतलब के लिए
जमीनों और घरों के
बंटवारे हो जाते हैं
इस धन लोलुप दुनिया में
जीते जी
जिन्दा रिश्तों के
बंटवारे हो जाते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
इंसान के जहाँ में
इंसानों के बंटवारे हो जाते हैं
मगर ये क्या
आज अखबार के
एक कालम ने
दिल को द्रवित कर दिया
अपने को श्रवण कुमार
साबित करने के लिए
अपने मृत जन्म दाता को
श्रद्धान्जली देने के लिए
अखबार में अलग अलग विज्ञापन दे दिये
जो श्रवण कुमारों के दिल में
अपने जन्मदाता के प्रति श्रद्धा को
संकुचित दायरे में ला रहे थे
माँ-बाप अपनी औलाद के
लिए न केवल
जिन्दा रहने तक जीते हैं
बल्कि मरने के बाद भी
वो छाया बन के
उनके साथ रहते हैं
इससे मन में ये प्रश्न
बार बार हृदय को
व्यथित करता है कि
हम क्यूँ स्वयं को
भ्रम में रखते हैं
हमारी ये दिखावटी सोच
शायद हमें या संसार को
संतुष्ट कर सकती है
लेकिन
क्या हम अपनी अंतरात्मा को
संतुष्ट कर सकते है
प्राणहीन काया पे गिरने वाले आंसू
दुनिया के लिए नहीं होते
दिल के ममत्व वाले
सागर के अंश होते है
हम जो कुछ खोते हैं
उसका कोई मोल नहीं होता
उसका इस जहां में
पुनर्भरण संभव नहीं होता
शायद इसीलिये ये आंसू
दिखावटी नहीं होता
कितना अच्छा हो
अगर हमारी श्रद्धान्जली का भाव भी
अहं से लिप्त न होकर
दिल से निकले
आंसू की तरह

पावन हो 

सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 10, 2017 at 2:14pm

आ.    गिरिराज भंडारी  जी प्रस्तुति के भावों को अपने आत्मीय समर्थन से सृजन का मान बढाने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 10, 2017 at 2:13pm

आ.    Mahendra Kumar    जी प्रस्तुति के भावों को अपने आत्मीय समर्थन से सृजन का मान बढाने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 10, 2017 at 2:13pm

आदरणीय समर कबीर जी प्रस्तुति को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। अस्वस्थता के चलते आपकी कमी खल रही थी।  मंच पर आपकी पुनः सक्रियता से आत्मा को तस्सली हुई।  खुदा आपको अच्छी सेहत बख़्शे। 

Comment by Sushil Sarna on March 10, 2017 at 2:09pm

आदरणीय   सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'    जी सृजन में निहित भावों को अपना आत्मीय मान देने का दिल से आभार। आदरणीय काफी समय से नेट प्रॉब्लम हो  रही है इसलिए मैं पूरी तरह से सक्रिय नहीं हो पा रहा हूँ। आपके स्नेह के आगे में नत मस्तक हूँ। आपकी ही नहीं बल्कि हर रचना पर जाना मेरा फ़र्ज़ है जो पूरा नहीं हो पा रहा। मैं प्रयत्न करूंगा कि यथासंभव आपकी शिकायत दूर कर सकूं।  सादर   .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2017 at 9:42am

आदरणीय सुशील भाई , अच्छा संदेश देती भाव पूर्ण कविता  की रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:27pm
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत ख़ूब कविता लिखी है आपने। हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।
Comment by Samar kabeer on March 8, 2017 at 5:45pm
जनाब सुशील सरण जी आदाब,बहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीजर करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on March 8, 2017 at 4:28pm
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन। आपकी लेखन शैली में जो एक बिम्ब बनता है, उसका मैं कायल हूँ, क्या बेहतरीन ढंग से भाव सम्प्रेषण किया हैं आपने। स्वार्थलोलुपता में हर कोई अँधा है।बहुत खूब। हार्दिक बधाई प्रेषित है।


आपसे कर जोर एक निवेदन करूँगा की मुझ जैसे नये लोगो की रचनायों पँर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देकर आप उत्साह बढ़ाएंगे, तो हमे भी लिखने की प्रेरणा मिलेगी। सादर
Comment by Sushil Sarna on March 8, 2017 at 2:40pm

आ.   Mohammed Arif    जी प्रस्तुति के भावों को अपने आत्मीय समर्थन से सृजन का मान बढाने का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 10:44pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,आजकल हम दिन प्रतिदिन स्वार्थलोलुपता में घिरते जा रहे हैं,झूठे आँसू बहा रहे हैं , अपनों से दूर होते जा रहे हैं, संवेदना मरती जा रही है । बस पवित्रता बची है तो सिर्फ़ आँसुओं में । बहुत ख़ूब कल्पना की है आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।

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