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चला गया ...

हवा 
शयन कक्ष के परदों से
खेलती रही

टेबल पर पड़ी मैग्ज़ीन के पन्ने
वायु वेग से
बार बार
फड़फड़ाते रहे

तन्हा से पड़े
काफी के मग
खाली होते हुए भी
अपने में
बहुत कुछ समेटे थे

समेटे थे
अपने अंदर
अकेलेपन से बातें करते
वो क्षण
जो काफी के मग को
अधरों से लगाए
कनखियों से निहारते हुए 
आँखों ने आँखों में
बिताये थे

समेटे थे
अपने अंदर
अव्यक्त
तृषित अधरों के
अंतर्द्वंद के
स्पंदन को
हृदय की कंदराओं में
जीते वो क्षण
जो
किसी की अनुपस्थिति को
जीवंत किये हुए थे

समेटे थे
अपने अंदर
अव्यक्त
कसमसाती
प्रेमानुभूति के वो क्षण
जो स्वप्नभाल पर
स्मृति चन्दन से बने 
अनुपम भित्ति चित्र को
शयन कक्ष के
हिलते हुए परदों के पीछे छोड़
कोई
फिर आने का
वादा कर
चला गया

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:32pm

आदरणीय तेज वीर सिंह जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी सहमति से पोषित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:31pm

आदरणीय सतविंदर जी प्रस्तुति को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि टंकण दोष के कारण है। इसे भी मैं अभी संशोधित कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2017 at 1:31pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपने प्रस्तुति को समय दिया इसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। आपके मार्गदर्शन से मैं लाभान्वित हुआ। आपके सुझावानुसार मैंने रचना में संशोधन कर दिया है। आशा है भविष्य में भी ऐसा ही मार्गदर्शन मिलता रहेगा।  आपके अमूल्य सुझाव एवम मार्गदर्शन का हार्दिक आभार। 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 17, 2017 at 10:38am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 16, 2017 at 10:47pm
आदरणीय सुशिल सरना जी सादर नमन।जीवंत बिम्बों के साथ अद्भुत कविता लिखी है आपने,हार्दिक बधाई स्वीकारें।पवन बेशतर पुल्लिंग् शब्द ही है,यही हमारा भी अनुभव हहै।बाकी इस शब्द पर और चर्चा की प्रतीक्षा रहेगी।/निहारते हुई/ में भी लिंग सम्बन्धी दोष प्रतीत हो रहा है।सादर
Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 10:37pm
"पवन चलती रही" का प्रयोग अगर साहित्य में किसी ने किया हो,या इस शब्द को स्त्रीलिंग में बांधा हो तो कृपा कर मुझे भी बताएं ?
साहित्य में जहाँ जहाँ इस शब्द का प्रयोग हुआ है वो बीच का हुआ है,यानी वहाँ स्त्रीलिंग या पुल्लिंग पता नहीं चलता,मिसाल के तौर पर:-
"ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े"
या
"उड़के पवन के संग चलूंगी"
या
"सपन चला आये कोई चोरी चोरी
मस्त पवन गाए लोरी"
जब शब्दकोष में "पवन"शब्द को पुल्लिंग बताया गया है तो हमें उसका पालन करना चाहिये, आपकी कविता इस शब्द की मुहताज भी नहीं,आप 'पवन'की जगह 'हवा'क्यों नहीं कर लेते,ये प्रश्न ही ख़त्म हो जायेगा,लेकिन इस कविता में 'पवन'कहना ही ज़रूरी है तो आप स्वतंत्र हैं ही ।
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 4:26pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन के भावों को अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। आपका कथन सही है लेकिन पवन चल रहा था तो नहीं कहेंगे चल रही ही कहेंगे , .... मेरे विचार से ये प्रयोग सही है ... शेष वरिष्ठ जन इस बारे में अधिक बता सकते हैं।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 3:58pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह सुंदर और जज़्बाती कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'पवन
शयन कक्ष के परदों से
खेलती रही'
आपकी जानकारी के लिये बतादूँ कि "पवन"शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:16pm

आदरणीय  Mohammed Arif      साहिब प्रस्तुति में  निहित भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on March 16, 2017 at 8:19am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । बधाई स्वीकार करें ।

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